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गंगोत्री – गौमुख ट्रेक : तपोभूमि में एक आध्यात्मिक अनुभव

 

चार धाम यात्रा के पड़ावों में गंगोत्री दूसरे स्थान पर है, यह आध्यात्मिक यात्रा यमुनोत्री से शुरू होकर गंगोत्री, केदारनाथ होकर बद्रीनाथ पर समाप्त होती है | इस वर्ष अक्टूबर(2017)में मुझे यात्रा का सौभाग्य प्राप्त हुआ और मैंने गंगोत्री के साथ गौमुख जाने का भी निर्णय कर लिया |

यमुनोत्री से उत्तरकाशी की दूरी लगभग 150 किमी है, और यहाँ से गंगोत्री 120 किमी है | यात्रा पर वैसे तो अकेला ही आया था, पर यमुनोत्री से पहले तीन चार लोग और मिल गए जिन्हें गंगोत्री भी जाना था, तो यमुनोत्री में दर्शन उपरान्त हम सब एक साथ ही उत्तरकाशी पहुँचे | यहाँ आते आते शाम हो गयी तो हमने पास ही स्थित बिरला धर्मशाला में रुकने का निर्णय किया |

हरिद्वार से आते समय बस में ही मेरी मुलाकात बलिया के एक सज्जन से हुई जो 2014-15 में साइकिल  से ही चार धाम यात्रा कर चुके थे और इस बार गंगोत्री जा रहे थे, मेरे अनुरोध पर वो भी मेरे साथ यमुनोत्री आ गए और अब हमने साथ ही गौमुख जाने का निर्णय किया | अगले दिन हम जल्दी जगे और पांच बजे टैक्सी स्टैंड पहुँच गए, हम पांच लोग थे, यहाँ दो लोग और मिले और हमने गाड़ी  कर ली | रास्ता भागीरथी के साथ साथ ही चलता है और धीरे धीरे ऊंचाई बढ़ने लगती है | उत्तरकाशी जहाँ 1200 मीटर पर है वहीँ गंगोत्री 3400 मीटर की ऊंचाई पर है और रास्ते में आपको हिमालय की बहुत सी चोटियाँ दिखाई देंगी | रास्ता बहुत सुन्दर है, चीड़ - देवदार के वृक्षों से भरा है और ऊंचाई बढ़ने के साथ भागीरथी बहुत नीचे छूट जाती है |

यहाँ पर आल वेदर रोड का काम चल रहा है, जिसके कारण जगह – जगह भूस्खलन हो रहे हैं, पहाड़ दरक रहे हैं सो अलग, साथ ही साथ छोटे बड़े डैम का भी कार्य निर्बाध गति से जारी है, और ये सब इसलिए की यहाँ ज्यादा से ज्यादा  पर्यटक आयें | शायद इन्हें विश्वास है कि हिमालय की दुर्गति देखने ज्यादा पर्यटक आएंगे | लगभग दो घंटे के बाद हम गंगानी पहुँचे, यहाँ गर्म पानी का कुंड है, जिसमें लोग आराम से नहाते हैं, यहाँ से आगे का रास्ता अत्यंत रमड़ीक है | थोड़ी देर बाद हम हर्षिल पहुँच गए, ये एक मनोहारी जगह है, और यहाँ के सेब बहुत प्रसिद्ध हैं, चारों ओर सेब के बागान, और रस्ते के साथ ही बहती कल कल करती भागिरथी, दोनों ओर गगनचुम्बी चोटियाँ, दृश्य किसी स्वर्गलोक से कम नहीं था |

यही हिमालय देखने श्रद्धालु दूर - दूर से आते हैं, यहाँ ज्यादा ट्रैफिक नहीं है तो इतनी चौड़ी सड़कें किस  लिए? अनगिनत बांधों के कारण पहाड़ पहले ही बहुत कमजोर हो चुके हैं, जगह जगह मिटटी उड़ रही है, कल - कल बहती नदियों का मार्ग अवरुद्ध होने के कारण बड़ी बड़ी झीलें बन रही हैं, जिनमें ठहरे हुए पानी के कारण बड़ी मात्रा में गाद जमा हो रहा है और नीचे बसे गाँव डूब रहे हैं | हिमालय की ये दुर्दशा देखकर ऑंखें भर आयीं, पता नहीं हमारी सरकारों को कब सद्बुधि आयेगी कि भारत के मुकुट, सैकड़ों छोटी बड़ी नदियों से इस देश के करोंड़ों नागरिकों की प्यास बुझाने वाले और पर्यावरण का तापमान नियंत्रित रखने वाले इस प्रत्यक्ष देवता को नुकसान पहुँचा कर हम अपना ही विनाश कर रहे हैं |

लगभग 9 बजे हम पवित्र गंगोत्री धाम पहुँच गए | मौसम बिल्कुल साफ है, धूप खिली है और बर्फीली हवाएं हमारा स्वागत कर रही हैं | सामने ही फारेस्ट ऑफिस है, जहाँ हमें गौमुख जाने के लिए परमिट मिलेगा | यहाँ हमनें अपने तीनों साथियों से विदा ली, परमिट लेने में दो मिनट लगे | रोज 300 परमिट मिलते हैं और ऑफिस 7 से 10 खुलता है |

मंदिर यहाँ से पांच मिनट की पैदल दूरी पर है, इस समय ज्यादा भीड़ नहीं है और आराम से माँ गंगा के दिव्य दर्शन हुए | मंदिर प्रांगन में ही भगवान शंकर, हनुमान जी, माँ दुर्गा, माँ सरस्वती और भागीरथी ऋषि के भी मंदिर हैं और पास ही बहती है कल कल बहती दूधिया भागीरथी नदी | यहाँ आराम से बैठकर नहा सकते हैं, घाट बने हुए हैं पर पानी एकदम बर्फीला है | थोड़ा जल छिड़ककर और माँ गंगा को प्रणाम कर हमनें गौमुख के लिए प्रस्थान किया, वैसे कुछ साहसी लोग नहा रहे थे |

गौमुख का रास्ता मंदिर से होता हुआ ही जाता है, और भागीरथी के साथ - साथ चलता है | गंगोत्री नेशनल पार्क यहाँ से एक किमी दूर है जहाँ परमिट चेक होता है और यहाँ से आगे का रास्ता बहुत सुंदर है | दोनों और बर्फ से लदी चोटियां और सामने सुदर्शन पर्वत है, जो आगे रस्ते के साथ साथ ओझल हो जाता है, नीचे कल कल बहती भागीरथी नदी है और दोनों और चीड़ और भोज वृक्षों के जंगल हैं |

मेरे नए मित्र सुमंत मिश्रा जी की आयु लगभग 60 वर्ष है, बलिया से हैं और दो बार साइकिल से बद्रीनाथ और केदारनाथ की यात्रा कर चुके हैं | मिश्रा जी अदम्य इच्छाशक्ति के धनी हैं, मेरे पास तो रुक्सैक है जिसे मैं आराम से कंधे पर टांग सकता हूँ पर इनके पास तो झोला है जिसे लेकर चलना इतना आसान नहीं है फिर भी भगवान का नाम लेकर आगे बढे चले जाते हैं | मिश्रा जी अत्यंत ही विनम्र हैं और कई बार मेरा भी बैग लेना चाहते हैं, पिछले कई वर्षों से उन्होंने अन्न का एक भी दाना नहीं ग्रहण किया है बस फल, आलू और मूंगफली पर जीवित रहते हैं | वेशभूषा, रहन सहन आचार विचार से पूरे संत हैं और यहाँ मुझे इस सत्संग का अनायास ही लाभ मिल गया | श्री रामचरितमानस में तुलसीदास जी ने सही लिखा है, “ बिनु हरि कृपा मिलई नहीं संता |”

यहाँ से चीड़बासा 6 किमी है और अब मोबाइल नेटवर्क नहीं है | अक्टूबर का महीना है, धूप खिली है पर हवाएं बर्फीली हैं और बहुत से ट्रेकर गौमुख और तपोवन जा रहे हैं, अधिकतर किसी ट्रेकिंग कंपनी के थ्रू जा रहे हैं | कुछ पर्वतारोही भी हैं, जिन्हें गौमुख ग्लेसिअर से होते हुए तपोवन स्थित अत्यंत पवित्र शिवलिंग पर्वत और इसके दूसरी ओर नंदनवन के पास सतोपंथ पर्वत की चढ़ाई करनी है, कुल मिलाकर बहुत सी टीमें और ट्रेकर्स |

ये स्थान अत्यंत ऊंचाई पर पाई जाने वाली नीली भेड़ों, हिम तेंदुओं और कुछ दुल्लभ हिमालयी जीव जंतुओं के कारण जाना जाता है पर अब मानवीय गतिविधियाँ बढ़ने के कारण ये विलुप्ति की ओर हैं और हमें गौमुख तक बस कुछ हिरणों (भरल) के ही दर्शन हुए |

गंगोत्री से हमने 10:30 पर प्रस्थान किया था, अभी दो घंटे हो चुके हैं और हम चीड़बासा पहुँचने वाले हैं और अब भागीरथी चोटियाँ पूरी तरह से आँखों के सामने हैं | पूरी तरह बर्फ से लदी ये तीन चोटियाँ अब गौमुख तक आपका स्वागत करती हैं | इनकी ऊंचाई क्रमशः 6450, 6510  और  6850 मीटर हैं, और ये भागीरथी में जल का एक मुख्य स्रोत हैं | लगभग 1 बजे हम चीड़बासा पहुँच गए, जो कि एक छोटी सी जगह है जहाँ आप कैम्पिंग कर सकते हैं और चाय नास्ते कि इस ट्रेक की एकमात्र दुकान यहाँ है | कभी कभी हल्का बीएसएनएल का नेटवर्क यहाँ पकड़ रहा था जिससे बहुत प्रयास के उपरांत घर में बात हो पायी |

दस – पंद्रह मिनट यहाँ रूककर हम भोजबासा के लिए चल दिए जो यहाँ से 8 किमी है, आगे का रास्ता बहुत पथरीला है, पर अच्छे से मार्क है इसलिए भूलने का डर नहीं है | जैसे जैसे हम आगे बढ़ते हैं, ऊंचाई बढ़ने लगती है, हवा और ठण्डी होती जाती है, भागीरथी पर्वत और भी ज्यादा साफ़ और चमकदार दिखने लगता है | यहाँ से आगे तीन किमी का रास्ता भूस्खलन जोन में है, और सरकते हुए पर्वतों के नीचे से जाता है | यहाँ 2013 में भयंकर भूस्खलन हुआ था और तबसे ही ये पहाड़ दरक रहे हैं, भगवान शंकर का नाम लेकर हमने इस जोन को पार किया | बीच-बीच में बहती छोटी – बड़ी धाराओं को पार करने के लिए भोज की शाखाओं से अस्थायी पुल बने हुए हैं, जो बड़े आकर्षक लगते हैं पर इन्हें संभल कर पार करना पड़ता है |

ऊंचाई बढ़ने के कारण स्वास जल्दी जल्दी लेना पड़ता है, जिससे हम जल्दी थक जाते हैं, और बार –बार बैठना पड़ रहा है पर जल्दी ही उठना भी पड़ता है, क्यूंकि बैठते ही ठण्ड लगने लगती है और हम अपनी मंजिल की और बढ़ चलते हैं |

सूर्यास्त का समय हो गया है, पहाड़ों की चोटियों ने सूर्य को छिपा लिया है और अब तापमान तेजी से गिरने लगता है | हमें चीड़बासा से चले पांच घंटे बीत गए हैं और थकान के कारण हमारे कदम धीरे हो गए हैं और तभी एक पत्थर पर बड़ा - बड़ा लिखा मिलता है, लाल बाबा आश्रम, भोजबासा आधा किमी | थके हुए शरीर में पढ़कर पुनः जान आ जाती है, और तभी थोड़ा आगे जाकर पवित्र शिवलिंग पहाड़ के प्रथम दर्शन होते हैं | अभी केवल शिखर का एक ओर का दृश्य ही मिल पा रहा है, पर्वत शिखर को प्रणाम कर हम आगे बढ़े और लगभग 6-6:30 बजे भोजबासा पहुँच गए |

ये एक वैली है और रहने के लिए GMVN का कॉटेज/टेंट स्टे और लाल बाबा का आश्रम है | दोनों का ही किराया 300/ बेड है वैसे आश्रम में खाना फ्री है | हम पहले GMVN पहुंचे, टीन के बने हुए रूम्स फुल हैं पर टेंट खाली है | एक टेंट में 6-8 तख़्त हैं, साफ़ है और रजाई –गद्दे पड़े हैं हमें ये ठीक लगा और रात हमने यहीं बितायी | मौसम बहुत सर्द हो चुका था, जल्दी से हमने गर्म कपड़े पहने और परिसर में ही बनी हुइ कैंटीन में खाना खाया, मिश्रा जी के लिय मूंगफली दाने भुनवा लिए जो वो अपने साथ लाये थे | यहाँ हमारी मुलाकात ओएनजीसी की एक पर्वतारोहण टीम से हुई जो सतोपंथ पर्वत की सफल चढ़ाई कर आ रही थी | उन्हें इस अभियान में एक महीने का समय लगा |

आज मंगलवार है, हनुमान जी का दिन है, मन ही मन सुन्दरकांड का जाप किया, और आगे की यात्रा के लिए भगवान से प्रार्थना की | आठ बजे तक टेंट पूरा भर जाता है, और लोग मिश्रा जी की बातों और कहानियों का आनंद लेने लगते हैं, तभी जनरेटर बंद होता है और बातचीत को विराम लग जाता है | सुबह पांच का अलार्म लगा कर मैं सो गया |

सुबह मौसम साफ़ था, हवा अभी बंद है और जल्दी से फ्रेश होकर हम गौमुख के लिए निकल लिए | यहाँ से लगभग 4 किमी का कठिन रास्ता है, बाद का आधा रास्ता बोल्डर से भरा हुआ है और बहुत संभल कर चलना पड़ता है | जैसे जैसे हम आगे बढ़ते हैं, शिवलिंग पर्वत प्रकट होने लगता है | शिवलिंग पर्वत गौमुख की दायीं ओर तपोवन में है जहाँ से इसके पूर्ण दर्शन होते हैं पर गौमुख तक ये पर्वत लगभग पूर्णतः दृष्टिगोचर हो जाता है | एक घंटे के बाद उगते सूर्य की पहली स्वर्णिम किरणें जब इस पर्वत शिखर पर पड़ीं तब स्वर्ण के समान चमकता ये बड़ा ही दिव्य प्रतीत हुआ |

एक ओर भागीरथी और दूसरी ओर शिवलिंग पर्वत और दोनों ही स्वर्णिम रंग में रंगे, ऑंखें मानों ठिठक सी गई थीं | दो घंटे के बाद एक जगह रास्ता बंद था, आगे जाने का कोई मार्ग नहीं दिख रहा था, हम यहाँ सबसे पहले आये थे तो हमने रूक कर दूसरों की प्रतीक्षा की | यहाँ आने से पहले मैंने पढ़ा था कि जुलाई में यहाँ भीषण भूस्खलन हुआ था जिससे गौमुख की वास्तविक संरचना नष्ट हो गयी और ये कई जगहों से टूट कर अपने स्थान से और पीछे चला गया | गौमुख से बिल्कुल पहले हमें इस आपदा के संकेत मिलने शुरू हो गए |

पिछले 100 वर्षों में ये ग्लेशियर अपनी जगह से 1 किमी पीछे चला गया है और अब ये और तेजी से पिघल रहा है लगभग 22 मीटर प्रति वर्ष | ये बहुत खतरनाक संकेत है, यहाँ से निकला ताजा जल करोड़ों लोगों की प्यास बुझाता है और इस विशाल श्रोत का इस तरह सूखना बहुत चिंता की बात है | इसके ऊपर तपोवन में भी झीलों का निर्माण हो रहा है और इनसे कभी भी बड़ी तबाही आ सकती है, इस बार के भूस्खलन की बड़ी वजह आकाशगंगा नदी में आया उफान था जो कि किसी झील के टूटने से हो सकता है |          

लगभग 10 मिनट बाद पीछे से कुछ लोग आते दिखाई पड़े वो भी यहाँ आकर रुक गए, थोड़ी देर बाद कुछ और सदस्यों के साथ उनका गाइड आया, पास ही पहाड़ी पर भूस्खलन से आयी मिटटी का एक बहुत ऊँचा ढेर बना था लगभग 2-3 मंजिला ऊँचा बहुत अस्थायी जो कभी भी अपनी जगह से हट सकता था | गाइड उस पर चढ़ गया इसके उस पार नीचे उतर कर आगे का रास्ता था, गाइड लोगों को हाथ पकड़ कर चढाने और उतारने लगा, हमें ये बहुत असुरक्षित लगा और एक बार तो हमने वापस जाने का मन बना लिया | पर बाकी लोगों को चढ़ते देखकर हमनें भी हिम्मत जुटाई और गाइड की सहायता से इसके ऊपर चढ़ गए, नीचे उतरना तो और भी कठिन था, फिसलती मिटटी और पकड़ने के लिए कुछ नहीं, पर गाइड की सहायता से हम नीचे उतर गए |

ये 10 मिनट बहुत ही कठिन बीते, और इस पल हमनें जितना जीवंत अनुभव किया वो शायद इस यात्रा में फिर नहीं किया | उतरकर मैं थोड़ी देर बैठ गया, मन आश्चर्यजनक रूप से शांत हो गया था, विचित्र अनुभव था इतनी शांति तो घंटों के ध्यान से भी नहीं मिलती, मन ही मन भगवान शंकर को याद किया और ॐ नमः शिवाय बोलकर आगे प्रस्थान किया |

थोड़ी देर बाद हम गौमुख पहुँच गए या यूँ कहें तो नए गौमुख | गाय के मुख सद्रश्य इसकी आकृति तो बहुत पहले ही नष्ट हो गयी थी, पर आप बिल्कुल पास तक जाकर इसको देख सकते थे, भागीरथी का कल कल करता जल इस गुफा से ही बाहर आता था | पर इस बार के बड़े भूस्खलन के बाद भागीरथी ने मार्ग परिवर्तित कर लिया है, मार्ग अवरुद्ध हो जाने के कारण पहले एक तीन मीटर गहरी झील का निर्माण हुआ और फिर इस धारा को आगे जाने का मार्ग मिला |

अब ये धारा घूम के आती है और आप बस कुछ ऊपर से ही इसे देख सकते हैं, उद्गम स्थल तक जाना अब असंभव हो गया है | हमने और साथ ही अन्य यात्रियों ने दूर से ही माँ गंगा को प्रणाम किया, शिवलिंग पर्वत यहाँ से साफ दिखता है, उज्जवल स्वेत बर्फ से ढका हुआ ये पर्वत बड़ा ही दिव्य प्रतीत होता है, पर्वत को नमन कर और धूप, कपूर से भगवान शंकर की आरती कर हमने कुछ देर यहीं शांति से विश्राम किया |

                                     

गंगोत्री धाम से गोमुख के रस्ते पर 6 -7 किमी की दूरी पर चीड़बासा है, यहाँ से लगभग इतने ही किमी दूर भोजबासा है | किसी ज़माने में यहाँ चीड़ के वृक्षों की बहुतायत थी, जिससे इसका यह नाम पड़ा |
चीड़बासा, भोजबासा, शिवलिंग पर्वत और गोमुख के समीप गंगाजी 
भोजबासा | गंगोत्री से गोमुख के रास्ते में भोज वृक्षों के पेड़ बहुतायत में थे, अब ये कम मात्रा में हैं | भोजबासा में भागीरथी पर्वत की चोटियाँ अपने दिव्य, विराट स्वरुप में दिखाई पड़ती हैं |
शिवलिंग पर्वत तपोवन में स्थित है और गोमुख से लगभग 2 किमी की खड़ी चढ़ाई है | गंगोत्री ग्लेशिअर के एक ओर ये पर्वत और दूसरी ओर भागीरथी पर्वत हैं |
गंगा का उद्गम स्थल, गोमुख | अब ये ग्लेशिअर लगातार टूटता और पीछे खिसकता जा रहा है, और झीलों का निर्माण हो रहा है |
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