top of page
गंगोत्री मंदिर परिसर | यहाँ माँ गंगा के अतिरिक्त भगवान शिव, अन्य देवी देवताओं और ऋषि भागीरथी जी के भी मंदिर हैं | यहाँ का अनुपम सौन्दर्य मन्त्र मुग्ध कर देता है |

​गंगोत्री मंदिर, नेशनल पार्क और सुदर्शन पर्वत

गंगोत्री से गोमुख ट्रेक पर, गंगोत्री से बस एक किमी की दूरी पर गंगोत्री नेशनल पार्क स्थित है |
सुदर्शन पर्वत गंगोत्री - गोमुख ट्रेक पर बायीं ओर को स्थित है और कुछ दूर तक ट्रेक पर दिखाई पड़ता है |
गंगोत्री - गोमुख ट्रेक का एक सुन्दर दृश्य | दायीं ओर भोज का पेड़, सामने दिखते भागीरथी पर्वत |
सुमंत मिश्र जी | हमारे यात्रा के साथी मिश्रा जी, गंगोत्री - गोमुख ट्रेक पर फोटो खिंचाते हुए |

चीड़बासा के आगे 

4400 मीटर की ऊँचाई पर स्थित गौमुख एक समय ऋषियों – मुनियों की तपस्थली हुआ करता था, इसके दाहिनी ओर स्थित तपोवन में अभी भी कुछ संत तपस्या में लीन हैं, पर अब यहाँ साधु सामान्यतः नजर नहीं आते, इसके भी अपने ही कारण हैं |

गंगोत्री जहाँ एक समय इक्का – दुक्का कारें ही दिखती थीं, अब एक मुख्य पर्यटन स्थल बन चुका है, यात्रा समय यहाँ लाखों लोग आते हैं, हजारों कारें और अन्य वेहिकल्स, जिससे यहाँ का मौसम गर्म हो रहा है | इनमे से हम जैसे बहुत से लोग गौमुख और तपोवन भी जाते हैं, कुछ अकेले तो कुछ पूरे परिवार के साथ, जिससे यहाँ की शांति भंग होती है | प्रकृति पर विजय पाने की इच्छा पाले बहुत से पर्वतारोही इन दुर्गम स्थलों पर महीनों पड़े रहते हैं जिससे यहाँ के पारिस्थतिक तंत्र पर बुरा असर पड़ता है, तो कुछ यूँ ही बस घूमने की इच्छा से इन जगहों पर चले आते हैं तभी तो कमर्शियल ट्रेकिंग कंपनियों का बिज़नेस फल फूल रहा है |

गंगोत्री ग्लेशियर जो चौखम्भा (आस पास का सबसे ऊँचा पर्वत 7000 मीटर) से शुरू होता है, लगभग 30 किमी लम्बा है और आधे से लेकर 2 किमी तक चौड़ा है, ग्लोबल वार्मिंग के कारण हर वर्ष 22-25 मीटर पीछे सरक रहा है, और ये एक बहुत विकट समस्या है | आस – पास के इलाकों के अंधाधुंध विकास और पेड़ों की कटाई से ये समस्या और विकराल होती जा रही है, और ये भी सुनने में आया है कि इसको टूरिस्ट सेंटर के रूप में विकसित करने की योजना है, तो आप सोच सकते हैं कि ये लोग कितने ज्यादा अंजान और असंवेदनशील हैं |

तो अब आप समझ सकते हैं कि ऋषि मुनि क्यों यहाँ से अद्रश्य हो गए, उनके पास और और दुरूह और अगम स्थलों में जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा और इसी के साथ यहाँ की शांति, सुन्दरता और दिव्यता भी कम होती चली गयी |

आसमान इतना भी नीला हो सकता है, धूप इतनी भी चमकीली हो सकती है या तारे इतनें भी साफ़ दिख सकते हैं, ये आपको हिमालय के ऐसे स्थलों में आकर ही अनुभव हो सकता है, और मैं अपने आपको बहुत भाग्यशाली समझता हूँ की मुझे ये सब कई बार अनुभव करने का अवसर प्राप्त हुआ | पर आप इसे यूँ ही नहीं ले सकते, अगर हम अभी सजग नहीं हुए और हिमालय की इस दुर्दशा के बारे में लोगों को जागरूक नहीं किया तो इस अनमोल धरोहर का विनाश होने में ज्यादा समय नहीं लगेगा |

गौमुख में सुबह के 9 बज चुके हैं, और तापमान अभी से 15 डिग्री पहुँच चुका है, घूम के बहती गंगा माँ का कोलाहल सुनकर ऐसा लगता है मानों अपने पुराने स्वरुप को पाने के लिए पुकार रही हों | मैया को उनका वही पुराना गौरवशाली स्वरुप पुनः प्राप्त हो ऐसी भगवान शिव से प्रार्थना कर, मिश्रा जी के साथ मैंने शिवलिंग पर्वत को प्रणाम किया और इस दिव्य स्थल से प्रस्थान किया |

                                   ॐ नमः शिवाय ||

bottom of page