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​         कर्नाटक का आभूषण : हम्पी 

हम्पी, विजयनगर , किष्किन्धा ये तीनों एक ही जगह के अलग अलग नाम हैं जो की अलग अलग कालखंड में प्रचिलित थे | इनमे से प्राचीनतम नाम हैं, पम्पा (देवी पार्वती का एक नाम ) और किष्किन्धा | पम्पा या तुंगभद्रा नदी के किनारे बसा हुआ यह रामायणकालीन नगर अपने आप में अदभुत है |

हम्पी को बोल्डर(शिला) सिटी भी कहा जाता है | ये विशाल बोल्डर्स, जिनमें से कुछ तो 20 से लेकर 30 मीटर तक ऊँचे हैं, मीलों तक फैले हुए हैं और नगर को एक अलग ही गुलाबी छटा में रंगते हैं |

नेट पे कर्नाटक के टूरिस्ट प्लेसेस सर्च करते हुए अचानक ही हम्पी के बारे में पता चला, और ये पढके की यहाँ ही पुराना विजयनगर राज्य था और ये एक रामायण कालीन नगर है, मन में यहाँ जाने की इच्छा हुई और जब कंपनी के काम से एक बार बैंगलोर जाने का अवसर मिला तो कुछ दिनों की छुट्टी लेकर हम्पी चला गया |

बैंगलोर से रात में 10 बजे  हम्पी एक्सप्रेस चलती है जो सुबह 7 बजे हम्पी पहुँचती है, टाइम और सुविधा के हिसाब से भी ये ट्रेन परफेक्ट है और इसी ट्रेन से मैं ठीक 7 बजे हम्पी पहुँच गया | रेलवे स्टेशन होसपेट के नाम से है और हम्पी जाने के लिए बस और ऑटो मिलते हैं, दूरी लगभग 14 किमी है जिसमें आधे घंटे का समय लगता है | हम्पी में रुकने के लिए होम स्टे और छोटे गेस्ट हाउस हैं; मिड रेंज होटल यहाँ अवेलेबल नहीं हैं, हायर रेंज के दो – तीन फाइव स्टार होटल्स है जो हम्पी से 8-15 किमी की दूरी पर हैं | लगभग 7:45 के आस - पास मेरा ऑटो लक्ष्मी होमस्टे के पास आकर रुका जो कि मैंने नेट से पहले ही बुक कर लिया था |

हम्पी नगर तुंगभद्रा नदी के दोनों ओर बसा है , इस नदी को पहले पम्पा भी कहते थे | यहाँ के लगभग सभी मुख्य पर्यटन स्थल, बाज़ार और नगर, नदी के दक्षिणी छोर पर ही हैं, नदी के उस ओर उत्तरी छोर पर नाव द्वारा पहुंचा जा सकता है  क्योंकि यहाँ आस - पास कोई पुल नहीं है और नजदीकी पुल काफी दूर है |

यह टेम्पल टाउन, यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साईट है , जो मीलों में फैला हुआ है , यहाँ हर ओर प्राचीन विजयनगर साम्राज्य के अवशेष फैले हुए हैं , कुछ मंदिर अच्छी स्थिति में हैं तो कुछ महलों एवं मंदिरों के खँडहर ही बचे हुए हैं | मीलों तक फैले इन मंदिरों , गुफाओं , महलों तथा अन्य पर्यटन स्थलों को न तो पैदल ही देखा जा सकता है, न तो ऑटो से क्योंकि ये एक बोल्डर टाउन है जहाँ हर ओर वेहिकल्स नही जा सकते, या अगर जाते भी हैं तो पूरा चक्कर लगा कर जो बहुत लम्बा पड़ता है, अभी नदी के इस ओर रेंट पे बाइक्स भी बैन कर दी गयी हैं, और कुछ मोंयूमेन्ट्स तो एक दूसरे से 5 किमी की दूरी पर हैं, तो क्या किया जाय घूमने के लिए ?

साइकल्स रेंट पे मिलती हैं और यही सबसे अच्छा और सस्ता विकल्प है यहाँ, तो रूपए 150/डे की एक गियर साइकिल लेकर मैं निकल पड़ा शहर घूमने | फरवरी का महीना है और सीजन जल्दी ही ऑफ होने को है क्योंकि यहाँ अभी से तापमान 34-35 पहुँच चुका है | यहाँ के सारे होटल्स, रेस्तौरेंट्स, घर, होम स्टे , सब कुछ  हम्पी बाज़ार में हैं जो की खुद एक छोटा सा दो फुटबाल फील्ड के बराबर स्थान है और इसी से सटा हुआ है, यहाँ का प्रसिद्ध विरुपक्षा मंदिर | यह विजयनगर साम्राज्य से भी पहले का प्राचीन शिव मंदिर है और मंदिर प्रांगण के अन्दर ही पम्पा देवी और भुवनेश्वरी देवी के भी मंदिर हैं |

मंदिर दर्शन के उपरांत लक्ष्मी नामक एक विशाल हथिनी से आशीर्वाद लेकर मैं निकल पड़ा हेमकुंठ पर्वत, जो कि एक बड़ा सा पठार है और यहाँ दूर दूर तक मंदिर, प्राचीन स्मारक और खंडहर फैले हुए हैं | यह एक विचित्र स्थान है और यहाँ पर एक के ऊपर एक खड़ी बड़ी - बड़ी शिलाएं आकर्षण का केंद्र हैं जिनमें से कुछ तो 15 से 20 मीटर तक लम्बी हैं और आश्चर्यजनक रूप से संतुलन बनाये हुए हैं और कईयों में प्राचीन शिलालेख लिखे हुए हैं |

बहुत सारी शिलाओं और पत्थरों पर भगवान श्री राम, लक्ष्मण, माता सीता और हनुमान जी की आकृतियाँ बनी हुई हैं जो कई हज़ार साल पुरानी हैं | यह फोटोग्राफी के लिए बढियां जगह है, ऊंचाई पर स्थित होने के कारण यहाँ से इस जगह का अच्छा आईडिया मिलता है, यहाँ से थोड़ा नीचे उतरकर गणेश जी का मंदिर है और इसके ही पास है एक और प्राचीन गणपति मंदिर जिसकी प्रतिमा काफी विशाल है और सिंगल स्टोन से( मोनोलिथिक )बनी हुई है |

वापस विरुपक्षा मंदिर के पास आकर मैंने अपनी साइकिल उठाई और निकल पड़ा विठाला मंदिर की ओर | यहाँ पर एक मैप जरुर रखें जो कि बहुत आसानी से 5 – 10 रूपये में मिल जाता है, ये बहुत काम की चीज है क्योंकि यहाँ कदम कदम पर मोन्यूमेंटस बिखरे हुए हैं, कोई पक्का रास्ता नहीं है और मैप होने से आसानी रहती है |

थोड़ी देर साइकिल चलाने के बाद रास्ता खत्म हो गया, मैंने पास ही साइकिल लगायी और नारियल पानी पीने लगा, अभी दिन के 10 ही बजे हैं, पर तापमान यहाँ 30 के आस - पास पहुँच गया है, दूसरा ये एक बहुत ड्राई एरिया है और थोड़ा चलने पर ही गला सूखने लगता है, इसलिए बैग में पानी की बोतल जरुर रखें |

नारियल वाले ने बताया कि विठाला मंदिर जाने के लिए आगे से पैदल ही जाना पड़ेगा क्योंकि रास्ता उबड़ - खाबड़ है और नदी के किनारे - किनारे बोल्डर्स के बीच से जाता है पर साइकिल साथ ले जा सकते हैं क्योंकि आगे और बहुत से मोन्यूमेंटस हैं जहाँ कच्चा रास्ता है | लगभग एक-दो किलोमीटर चलने के बाद मैं विठाला मंदिर पहुँच गया, रास्ते में एक प्राचीन राम मंदिर भी पड़ा जहाँ मेरी मुलाकात एक स्पेनिश लड़के से हुई, वो भी विठाला मंदिर की ओर जा रहा था | रास्ते में जिधर देखो उधर खंडहर ही खँडहर फैले हुए हैं जिन्हें देख कर ये सहज ही पता चलता है की विजयनगर अपने समय में विश्व का सबसे बड़ा और धनी राज्य था |

ये दो किमी तय करने में हमें लगभग आधा घंटा लगा और विठाला मंदिर पहुँचते ही हमने पानी की पूरी बोतल खाली कर दी | ये वास्तव में एक मंदिर काम्प्लेक्स है जहाँ बहुत से प्राचीन और वास्तुकला की द्रष्टि से अत्यंत बेजोड़ मंदिर हैं | इसका प्रमुख आकर्षण है , स्टोन चैरिअट (पत्थर का रथ)| ऐसे चैरिअट भारत में बस तीन ही हैं – कोणार्क (उड़ीषा) और महाबलीपुरम (तमिलनाडु)|

विठाला मंदिर हम्पी का सबसे बड़ा टूरिस्ट अट्रैक्शन है और ये स्टोन चैरिअट, कर्नाटक टूरिज्म का प्रतीक चिन्ह भी है | स्टोन चैरिअट वास्तव में गरुड़ देवता का मंदिर है | विठाला मंदिर के अन्य प्रमुख आकर्षण हैं, मुख्य मंतप (हाल ) और रंग मंतप | रंग मंतप का आकर्षण है, म्यूजिकल पिलर्स, इन्हें सारेगामापा पिलर्स भी कहा जाता है, सारे मिलाकर 56 पिलर्स हैं और हर एक पिलर सात छोटे पिलर्स से घिरा हुआ है, जब आप इनको टैप (बजाते) हैं तो इनसे संगीत उत्पन्न होता है, और इनसे सात अलग – अलग तरह के सुर उत्पन्न होते हैं |

ये पूरा मंतप एक ही प्रकार के रेसोनैंट स्टोन से बना है और इसका संगीत उत्पन्न करना सदियों से राज ही है, और इसको समझने के लिए अंग्रेजों ने दो पिलर्स की खुदाई भी कराई पर उन्हें अन्दर कुछ नहीं मिला, ये दो पिलर्स आज भी अपनी जगह पर खड़े हैं |

महामंतप : ये काम्प्लेक्स का मुख्य भवन है , ये बहुत ही सुन्दर भवन है और एक अत्यंत ही सुशोभित बेस के ऊपर बना हुआ है, बेस घोड़ों, योद्धाओं, और अन्य दूसरी आकृतियों से अलंकृत है | गर्भ गृह में भगवान विष्णु की प्रतिमा थी पर ये आज यहाँ नहीं है, मुग़ल आक्रमण के समय इस मंदिर काम्प्लेक्स को काफी क्षति पहुंची थी और इसका काफी बड़ा हिस्सा आज मौजूद नहीं है या खँडहर में बदल चुका है |

 

हेमकुंठ पर्वत, विरुप्क्षा शिव मंदिर के बायीं और स्थित है और हम्पी के प्रमुख आकर्षणों में से एक है |
ये एक के ऊपर एक संतुलन बनायी हुईं  विशाल शिलाएँ हेमकुंठ पर्वत के अतिरिक्त भी हम्पी में कई स्थलों पर मिलेंगी |
किष्किन्धा का एक और प्रमुख आकर्षण है, विठाला मंदिर | यहाँ पर पत्थर का रथ, संगीतमय खम्बे इत्यादि देखने योग्य हैं |
हेमकुंठ पर्वत और विठाला मंदिर प्रांगण में स्थित पत्थर से निर्मित रथ 

ये एक देखने लायक जगह है और शाम को आर्टिफीसियल लाइट्स से जगमग होने पर ये और भी सुन्दर लगता है | दिन के बारह बज रहे थे, और मुझे भूख भी लग रही थी, और तापमान 35 के आस पास पहुँच गया था , इसलिए मैंने बाज़ार वापस जाने का मन बनाया और खाना खाकर मैं निकल पड़ा , नदी के उस पार, जो कि एक बिलकुल ही अलग और नया हम्पी है | विठाला मंदिर से निकलते समय एलेक्स आस पास के दूसरे स्थल देखने निकल गया, मैंने उससे नदी के दूसरी ओर के प्लेसेस के बारे में जानकारी ली और अपनी साइकिल एक छोटी नाव पे लादकर मैं पहुँच गया एक दूसरे ही हम्पी या हिप्पी सिटी |

ये असली हम्पी है, हरे – भरे चावल के खेत, पहाड़ और झीलें और चारों ओर इजरायली ही इजरायली | हिमांचल प्रदेश के बाद, ये उनका भारत में सबसे पसंदीदा स्थान है | पहुँचने पर पता चला कि यहाँ किराये पर स्कूटर्स भी मिलते हैं, पर साइकिल चलाने का भी अपना ही मज़ा है | यहाँ से कोई 3 - 4 किमी की दूरी पर है, अंजना हिल, जो कि यहाँ की सबसे ऊँची पहाड़ी है | पहुँचने का रास्ता पक्का और खुला है, दोनों ओर चावल के खेत हैं और साथ ही साथ बहती है, तुंगभद्रा नदी | कड़ी धूप के बाद भी इस रस्ते पे साइकिल चला के मज़ा आ गया और आधे घंटे के बाद मैं पहुँच गया अंजना पर्वत के नीचे |

ये पर्वत अपनी सफ़ेद और केसरिया सीढियों की वजह से दूर से ही दिख जाता है, पर्यटक स्थान होने के साथ ही साथ ये एक धार्मिक स्थान भी है और पहाड़ी के ऊपर स्थित है, हनुमान जी का प्राचीन मंदिर | यहाँ पहुँचते ही मैंने अपनी साइकिल एक दुकान के किनारे लगायी, और जी भरकर नारियल पानी पिया, ऊपर जाने के लिए लगभग 800 सीढियाँ चढ़नी पड़ती हैं और तीन बजे की कड़ी धूप में ये काम थोड़ा मुश्किल है | जय बजरंगबली बोलकर मैंने शुरुआत की, और ऊपर तक जाने में लगभग 45 मिनट का समय लगा |

अंजना, जो कि हनुमान जी की माता का नाम है, ने यहाँ कई वर्षों तक कठोर तप किया था जिसके बाद उन्हें शिव जी से वरदान प्राप्त हुआ और हनुमान जी का जन्म हुआ, उन्ही के नाम पर इस पर्वत को अंजना हिल के नाम से जाना जाता है | ये वास्तव में हम्पी का  सबसे अच्छा  और सुन्दर स्थान है, और केवल इस जगह आकार ही आपका हम्पी आना सार्थक सिद्ध हो जाता है | पहाड़ी के ऊपर खुला हुआ और सपाट एरिया है जो काफी बड़ा है और यहाँ से हम्पी का 360 व्यू देखा जा सकता है | ऊपर पहुँचते ही ठंडी हवा के झोकों ने सारी थकान उतार दी, इस पर्वत पर चारों ओर बन्दर और लंगूर उछल कूद करते रहते हैं, और करें भी क्यों न ये उनके आराध्य का ही तो स्थान है |

मंदिर पहाड़ी के किनारे, जीनों से सटा हुआ ही बना है, और यहाँ अनवरत रामायण, हनुमान चालीसा का पाठ चलता रहता है, पास ही पुजारियों के रहने की जगह है | पूछने पर पता चला की पुजारी बनारस से हैं, और बारी बारी से दो पुजारी इस कार्य में लगे रहते हैं और ये पाठ कई वर्षों से अनवरत ही चल रहा है |

मंदिर में हनुमान जी, भगवान राम, लक्ष्मण और सीता तथा अंजनी माता की प्रतिमाएं हैं, यहाँ बैठकर अपूर्व शांति का अनुभव होता है और मन कहीं और जाने को नहीं होता | शाम के समय यहाँ से चारों ओर का नजारा देखते ही बनता है, ढलते सूर्य की किरणें, मीलों तक फैले इन शिलाओं और पत्थरों के नगर को अपने समान ही लाल रंग में रंग देती हैं | यहाँ विरुप्क्षा से लेकर विठाला मंदिर और मतंग पर्वत से लेकर हेमकुंठ पर्वत सभी कुछ दिखता है, ये वास्तव में एक बहुत बड़ी और सपाट जगह है और एक के ऊपर एक लदे बौल्डर्स से बनी है जिन्हें पार कर के आप इस के अंत तक जा सकते हैं और कम से कम 30-40 किमी दूर तक देख सकते हैं |

तुंगभद्रा जिसका प्राचीन नाम पम्पा भी है, के पार माता अंजनी हनुमान मंदिर है | श्री रामभक्त हनुमान जी की यह जन्मस्थली भी है |
अंजनी माता हनुमान मंदिर 
पम्पा सरोवर के समीप ही, मतंग मुनि आश्रम, शबरी माता मंदिर इत्यादि स्थित हैं |
पम्पा सरोवर और विरुप्क्षा मंदिर 
संध्या के समय, मतंग पर्वत से विरुप्क्षा शिव मंदिर का एक सुन्दर दृश्य |

मुझे यहाँ आये डेढ़ घंटे हो चुके थे, शाम हो रही थी और टूरिस्ट बढ़ने लगे थे, बेहद शांत वातावरण और ठंडी हवा के झोंके वापस उतरने की अनुमति नहीं दे रहे थे, पर उतरना तो था ही क्योंकि सात बजे के बाद फेरी बंद हो जाती है, और मेरा होम स्टे नदी के दूसरी ओर था |

साइकिल वापस करके और नहा के मैं पहुँच गया मैंगो ट्री, यहाँ का सबसे पोपुलर फ़ूड पॉइंट | घुसते ही मेरी नजर एलेक्स पे पड़ी और वहीँ जाकर बैठ गया | खाना खाकर और यहाँ की फेमस निम्बू लस्सी पीकर हम लगे गप शप करने | एलेक्स अकेला ही भारत आया है और ये उसकी यहाँ की दूसरी ट्रिप है, पहली ट्रिप 5 साल पहले की थी | वो भारत में इस बीच आये चेंजेस से हैरान है और उसके हिसाब से भारत बहुत तेजी से विकास कर रहा है | वो भारत को जानना और समझना चाहता है, गाँधी जी के बारे में बात करता है और इतिहास से जुड़े सवाल पूछता है, मैंने उसे बताया की अगर उसकी रूचि वास्तव में भारत को जानने में है तो उसे स्वामी विवेकानंद के बारे में पढना चाहिए, जो उसने नोट कर लिया | काफी देर बात करने के बाद हम वापस अपने होटल चले गए, एलेक्स को सुबह मुंबई निकलना था, मेरी ट्रेन कल रात की थी तो मै काफी रिलैक्स था और चैन से सो गया |

अगले दिन मैं निकल पड़ा पम्पा सरोवर और शबरी आश्रम देखने, ये दोनों ही जगहें अंजना हिल से बस कुछ ही दूरी पर हैं, और साइकिल या ऑटो से जाया जा सकता है | शबरी आश्रम काफी प्राचीन है, यहीं भगवन श्री राम ने माता शबरी के जूठे बेर खाए थे, आज भी यहाँ आस पास बहुत सारे बेर के पेड़ हैं, और यहाँ के बेर काफी बड़े और स्वादिष्ट हैं | पास ही पम्पा सरोवर है ये भी रामायणकालीन है और चारों ओर शिलाओं से घिरा हुआ है, सरोवर कमल के पुष्पों से भरा हुआ है, बहुत सारे प्राचीन मंदिर भी यहाँ हैं जिनमे से प्रमुख हैं, लक्ष्मी मंदिर और शिव मंदिर |

यहाँ से लगभग 1 किमी की दूरी पर है दुर्गा मंदिर, जिसकी यहाँ काफी मान्यता है, ये भी विजयनगर कालीन एक प्राचीन मंदिर है और मंदिर के पास ही एक किला भी है जो कि जर्जर अवस्था में है | ये सब देखते हुए दोपहर हो गयी और मैं वापस साइकिल फेरी पर डालकर हम्पी आ गया | मैंगो ट्री में लंच करके मैं आस – पास के और टूरिस्ट्स स्पॉट्स देखने निकल पड़ा, पर ये इतने सारे हैं और एक दूसरे से इतनी दूर हैं कि सब एक बार में दो दिनों में देखना संभव ही नहीं है और शाम को मुझे मतंग हिल पर भी जाना था सूर्यास्त देखने के लिए, इसलिए बहुत सारी अन्य जगहें मिस हो गयीं |

मतंग हिल: ऋषि मतंग के नाम पर इसका यह नाम पड़ा | ये विरुपक्षा मंदिर के सामने ही आधे किलोमीटर पर है, यहाँ उपर जाने के लिए सीढ़ियाँ हैं, जो कि काफी स्लिपरी हैं इसलिए संभल के चढ़ना पड़ता है, ऊपर तक पहुँचने में 15-20 मिनट लगते हैं, पर ये वास्तव में जाने लायक जगह है | यहाँ से सूर्यास्त का दृश्य बेहद खूबसूरत है और न केवल इंसान बल्कि बन्दर भी इसे देखने आते हैं | पांच बजे तक खाली पड़ी ये हिल सूर्यास्त होते होते इनसे भर जाती है, पर ये काफी शांत किस्म के बन्दर हैं और नॉर्मली कोई नुकसान नहीं करते हैं | चढ़ाई होने के कारण यहाँ जादा पर्यटक नहीं आते हैं पर ये हम्पी की दूसरी सबसे बढियां जगह है | यहाँ से अंजना पर्वत स्पष्ट नजर आता है, साथ ही साथ अन्य दूसरी जगहें भी, विठाला मंदिर इसके पीछे ही है और विरुपक्षा ठीक सामने | सूर्य विरुप्क्षा मंदिर के पीछे ही अस्त होता है, और इस समय यहाँ पत्थरों का चटख गुलाबी रंग खिल के सामने आता है | फोटो लेने के लिए इससे बढियां जगह यहाँ कोई नहीं |

एक घंटा यहाँ बिताने के बाद और सूर्यास्त का विहंगम दृश्य देखने के बाद मैं नीचे उतर आया, साइकिल वापस की, और डिनर करने के बाद चेक आउट कर दिया | रात के 9 बज रहे थे जब मैं ऑटो लेकर होसपेट स्टेशन पहुँचा, हम्पी एक्सप्रेस वापस पकड़ने के लिए |

ये वास्तव में अनूठा शहर है, और इसके जैसा बोल्डर टाउन शायद ही दुनिया में दूसरा हो और कदम कदम पर अपने वैभवशाली अतीत का अनुभव कराता है| पूरा टाउन देखने के लिए शायद एक हफ्ते का समय भी कम पड़े, रामायण काल से लेकर विजयनगर काल तक और मुग़ल आक्रमण से लेकर आधुनिक काल, सब को अपने आप में समेटे ये नगर, सही मायनों में न सिर्फ कर्णाटक का, बल्कि भारतवर्ष का  आभूषण है | यहाँ एक बार फिर आने की सोचकर मैं हम्पी एक्सप्रेस में चढ़ गया |

 

कैसे जाएँ :

बाई एयर – बेल्लारी सबसे पास एअरपोर्ट है जहाँ से हम्पी 60 किमी है | अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा बैंगलोर है, 350 किमी |

ट्रेन : हम्पी एक्सप्रेस, बैंगलोर से रात 10 बजे , जो सुबह 7 बजे हम्पी आती है, वापसी में भी लगभग यही समय है |

बस : बैंगलोर , गोवा से स्लीपर बस सर्विसेज अवेलेबल हैं |

तापमान  - यहाँ नवम्बर से फरवरी के बीच जाएँ, तापमान 25 – 35 के बीच |

सूर्यास्त इस बोल्डर सिटी, हम्पी को अपने ही रंग में रंग लेता है | मतंग पर्वत से इसका आनंद हर कोई लेता है |
मतंग पर्वत 
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