top of page

केदारनाथ 

  ॐ नमः शिवाय

कर्पूर गौरं करुणावतारम्  संसार सारम्  भुजगेन्द्रहारम् ।

सदा  वसंतम्  हृद्यार्विन्दे  भवं भवानी सहितं नमामि ।।

चार धाम यात्रा में हमारा अगला पड़ाव था श्री बाबा केदारनाथ के दर्शन | मैं और मिश्रा जी गौमुख से शाम 7 बजे वापस गंगोत्री आ गए थे, गंगा आरती में भाग लिया और माँ से आशीर्वाद लेकर होटल आ गए | दिनभर के थके हुए थे तो पहले स्नान कर थकान उतारी फिर खाना खाया, मिश्रा जी के लिए आलू उबला दिए और थोड़ी मूंगफली भुनवा दी | अगले दिन यहाँ से सुबह 5 बजे उत्तरकाशी के लिए बस जाती है तो हम खा पीकर जल्दी सो गए |

सुबह हम पौने पांच पर ही बस स्टैंड पहुँच गए बस लगी थी पर सभी सीट्स कल रात ही बुक हो गयी थीं और ये एकमात्र बस थी | इसके बाद प्राइवेट टैक्सी और जीप मिलती और वो कब जातीं कोई भरोसा नहीं |

खैर हमारी किस्मत ठीक थी और पीछे की दो सीट्स खाली थीं तो जगह मिल गयी और बस ठीक पांच बजे छूट गयी | यहाँ से उत्तरकाशी 102 किमी है और हम 11 बजे पहुँच गए | पहुँचते ही हमने केदारनाथ या श्रीनगर के लिए बस पता की, पता चला की आखिरी बस 9 बजे छूट गयी और अब कोई बस नहीं है | मौसम ऑफ़ होने के कारण कोई सीधी बस केदारनाथ की नहीं थी, श्रीनगर के लिए सुबह पांच बजे बस थी जिसका टिकेट शाम चार बजे से बटना शुरू होता था तो हम आज यहीं रुके |

वही बिरला धर्मशाला,और कुल मिलकर यही यहाँ की सबसे अच्छी प्रोपर्टी है अभी ऑफ सीजन के कारण रूम खाली हैं | दो दिनों की ठण्ड के बाद यहाँ का मौसम बहुत अच्छा लगा, धूप खिली थी और तापमान 27-28 डिग्री के आस पास था | हमने भी मौसम का फायदा उठाया, गीजर ऑन किया और सारे मैले कपड़े धो डाले,पीछे ही लॉन था जहाँ सूखने को डाल दिए और आराम से नहाया | मिश्रा जी के कोई परिचित पास ही कहीं रहते थे तो वो उनसे मिलने चले गए और मैं खाना खाकर घूमने निकल गया |

जब दो दिन पहले यहाँ यमुनोत्री से आये थे तब बस अड्डे के पास ही लिखा देखा था, प्राचीन विश्वनाथ मंदिर ०.5 किमी, पर तब जा नहीं पाए थे | आज समय बहुत था तो मैं भगवान के दर्शन करने निकल गया | बाबा का ये मंदिर अत्यंत प्राचीन है, मंदिर प्रांगण विशाल एवं साफ सुथरा है और प्रवेश करते ही गणेश जी का मंदिर है | ये मंदिर भी बहुत प्राचीन है और प्रतिमा विशाल है यहाँ आशीर्वाद लेकर मैं कुछ सीढियाँ चढ़कर भगवान विश्वनाथ मंदिर पहुँचा |

मंदिर एक दम शांत है, काले पत्थर से निर्मित विशाल शिवलिंग दक्षिण की और झुका है और यहाँ अपूर्व शांति है | भगवान का अभिषेक जल लाना तो मैं भूल ही गया, फिर मेरे पास तो गंगोत्री और गौमुख से लाया हुआ जल है, इसी बहाने शाम को एक और बार आने का अवसर मिलेगा ये सोचकर मैं संतुष्ट हुआ | साथ लाये हुए फूल आदि से भगवान भोलेनाथ का अभिषेक किया| सामने ही माता गौरी की प्रतिमा है,यहां से बाहर आते ही एक और शिवलिंग है जो उत्तर दिशा में झुका है, इसकी स्थापना मार्कंडेय ऋषि ने की थी| मुख्य मंदिर के सामने ही विशाल त्रिशूल है जो पौराणिक है, ये लगभग 20 फीट ऊँचा है और इसके निर्माण में प्रयुक्त सामग्री क्या है, इस पर अभी तक शोध चल रहा है| खास बात तो ये है कि मात्र एक ऊँगली से स्पर्श करते ही ये सुद्धण त्रिशूल हिलता है, इसकी बनावट और संरचना देखकर विश्वास होता है की ये हजारों साल पुराना है |

यहाँ से दायीं ओर प्राचीन हनुमान मंदिर है,मेरे आराध्य देव का मंदिर | मंदिर परिसर बहुत बड़ा और शांत है,यहाँ आपको बहुत से साधु – सन्यासी भी बैठे मिलेंगे | मंदिर में पूजा – अर्चना कर और आने वाली यात्रा के लिये आशीर्वाद लेकर मैं वापस होटल आ गया |

थोड़ी देर सोने के बाद बस स्टैंड जाकर श्रीनगर की दो टिकट लीं, और कुछ फल लिए, वापस होटल आकर एक बोतल में गंगा जल भरा और एक बार पुनः भगवान भोले के दर्शन को उपस्थित हुआ| साफ सफाई के बाद मंदिर अभी वापस खुला है,भगवान शंकर का जलाभिषेक कर मैं हनुमान मंदिर में जाकर बैठ गया| हनुमान चालीसा का पाठ किया और कुछ देर इस शांत एवं आध्यात्मिक वातावरण का लाभ उठाया |

जैसे ही मैं वापस होटल पहुंचा, मिश्रा जी का फ़ोन आया वो बस स्टैंड पर थे और टिकट लेने वाले थे, मैंने उन्हें मना किया | उनके होटल पहुँचते ही मैंने उन्हें विश्वनाथ मंदिर के बारे में बताया तो वो भी चलने को उत्सुक हुए, और इसी बहाने मुझे एक और बार इस दिव्य मंदिर में जाने का सौभाग्य मिला | इस दिन वास्तव में भोलेनाथ की मुझ पर विशेष कृपा रही और मुझे तीन बार उनके दर्शनों का लाभ मिला |

श्रीनगर की बस छोटी ही है, पर हमारी सीट आगे की थी तो कोई असुविधा नहीं हुई और बस ठीक पांच बजे चल दी | भागीरथी को पार कर लगभग 8 बजे बस लम्बगांव पहुंची, उत्तरकाशी से ये दूरी 55 किमी थी, यहाँ हमने नाश्ता किया और लगभग 11:30 पर हम श्रीनगर पहुँच गए | उत्तरकाशी से श्रीनगर की दूरी 150 किमी है और यहाँ से गुप्तकाशी 77 किमी है |

यहाँ से गुप्तकाशी के लिए विश्वनाथ सेवा की बस मिली, रास्ता रुद्रप्रयाग, अगस्त्य मुनि और उखीमठ होकर जाता है | यहाँ से 14 किमी आगे धारी देवी मंदिर पड़ा, अलकनंदा के बीच स्थित मंदिर यहाँ आस्था का केंद्र है | वर्ष 2013 में बांध निर्माण के कारण इसको विस्थापित किया गया था और उस वर्ष आयी प्राकृतिक आपदा ने पूरे उत्तराखंड को तहस नहस कर दिया था | पर किसी ने कुछ नहीं सीखा और अब वापस बांध  निर्माण के कार्य निर्बाध गति से जारी हैं | हर दो चार किमी पर आपको ये निर्माण कार्य नजर आएंगे और इनके कारण यहाँ का पर्यावरण जबर्दस्त संकट का सामना कर रहा है | पर हेलीकाप्टर से उड़ने वाले इन हवाई नेताओं को जमीनी सच्चाई नजर नहीं आती और इसका परिणाम आम जनता को भुगतना पड़ता है |

श्रीनगर से रुद्रप्रयाग 33 किमी है और यह अलकनंदा और मन्दाकिनी का संगम स्थल है, यहाँ से बद्रीनाथ जाने वाला मार्ग पूर्व दिशा में कट जाता है | श्रीनगर से 77 किमी दूर गुप्तकाशी पहुँचने में चार घंटे से ज्यादा नहीं लगने थे पर बस में दुनियाभर का कूरियर/पार्सल था जिसे वो जगह जगह रोककर उतार रहा था जिसके कारण पहुँचते पहुँचते पांच बज गए | यहाँ से 30 किमी आगे सोनप्रयाग है और हमें आज वहाँ पहुंचना था पर अभी कोई साधन नहीं मिल रहा था और 1 घंटा ऐसे ही बीत गया | वैसे 8 -10 लोग थे पर कोई जीप वाला जाने को तैयार नहीं था और लगा कि आज यहीं रुकना पड़ेगा | 6 बजे एक बस आयी जिसे सोनप्रयाग जाना था पर सवारी कम होने के कारण वो आना कानी कर रहा था, खैर आधे घंटे में बस भर गयी और लगभग 8 बजे हम सोनप्रयाग पहुँच गए |

सोनप्रयाग छोटी सी जगह है जिसके थोड़ा पहले त्रियुगीनारायण के लिए रास्ता है | त्रियुगीनारायण वो जगह है जहाँ भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था | वैसे यहाँ जाने का बहुत मन था पर समय अभाव में जा नहीं पाए | सोनप्रयाग में बस कामचलाऊ होटल हैं और यहाँ से गौरीकुंड 5 किमी आगे है | बस स्टैंड के सामने ही यात्री रजिस्ट्रेशन काउंटर है जहाँ बायो मीट्रिक रजिस्ट्रेशन होता है | यहाँ से हम सुबह पांच बजे जीप में बैठ गए और आधे घंटे में गौरीकुंड पहुँच गए | यहाँ भी गर्म पानी का सोता है जहाँ स्नान किया और ॐ नमः शिवाय के जयकारों के साथ यात्रा आरंभ की | मिश्रा जी और मैंने गौमुख से लाया गया थोड़ा जल एक बोतल में भरा और बाकी एक दुकान में रखा दिया |  

यहाँ से रामबारा 6 किमी है और रास्ता अच्छा है बस चढ़ाई थोड़ी खड़ी है, 2013 की बाढ़ के बाद पुराना रास्ता बह गया था अभी नया रास्ता नेहरू माउंटेनियरिंग की टीम ने बनाया है जो बहुत अच्छा है | सीजन ना होने की  वजह से यात्रियों के भरमार नहीं है हाँ पर बहुत वीरान भी नहीं है | यहाँ पिट्ठू, घोड़ा, खच्चर चलते हैं तो बुजुर्ग यात्रियों के लिए सुविधा है | पिट्ठू का काम बहुत कठिन है और हमारे जैसा ही आदमी अपने समान या  भारी आदमी को पीठ पर बैठा कर ले जाता है, देखकर थोड़ा अटपटा लगता है पर यही सच्चाई है और इनके लिए यही जीवन है |

गुप्तकाशी और सोनप्रयाग से हेलीकाप्टर सुविधा भी है और बस 5 -10 मिनट में आप आराम से मंदिर के निकट पहुँच सकते हैं हाँ पर लगातार हर मिनट या कभी तो एक मिनट में 3-4  उड़ते हुए हेलीकॉप्टरों से रास्ते की शांति भंग होती रहती है |

रामबाड़ा से रास्ता मन्दाकिनी के दायें ओर से जाता है, पहले पूरा रास्ता ही बायीं और से था पर इसका अधिकांश हिस्सा बहने के बाद अभी नया रास्ता दूसरी ओर से जाता है | ये अपेक्षाकृत ऊंचाई पर है जिससे चढ़ाई बहुत खड़ी है पर पहले की तुलना में ज्यादा सुरक्षित है | नया रास्ता नेहरु माउंटेनियरिंग की टीम ने बनाया है और ये पक्का है | इतने कम समय में इतना अच्छा रास्ता बनाने के लिए ये बधाई के पात्र हैं |

उत्तरकाशी श्री विश्वनाथ मंदिर में रखा पौराणिक त्रिशूल
उत्तरकाशी के प्राचीन बाबा विश्वनाथ मंदिर में रखा पुरातन त्रिशूल, जो कोई 20 फीट से भी अधिक ऊँचा है |
रामबाड़ा | साल २०१३ में हुए विनाश के निशान अब भी यहाँ देखे जा सकते हैं | नया रास्ता अब मन्दाकिनी नदी के दायीं ओर से जाता है |
रामबाड़ा से पहले, आगे रास्ता दायीं ओर से जाता है |
बाबा केदारनाथ मंदिर की ओर बढ़ता रास्ता |
श्री केदारनाथ के लिए हेलिकॉप्टर सेवा भी उपलब्ध है |
अनवरत उड़ते हेलिकॉप्टर, बहुत शोर मचाते हैं 
bottom of page