2013 में आयी बाढ़ के निशान यहाँ साफ देखे जा सकते हैं, वैसे मंदाकिनी पुराने रस्ते से भी लगभग 60-70 मीटर नीचे बहती है पर इतनी ऊँचाई के बाद भी उस सैलाब में ये जगह – जगह से बह गया | रामबाड़ा से आगे 6 किमी तक सीधी चढ़ाई है और उसके बाद रास्ता लगभग सपाट है | रस्ते में जगह – जगह शेड हैं, रामबाड़ा तक हर किमी पर चाय नाश्ते की दुकाने हैं | वैसे तो रस्ते में हर किमी पर पीने के पानी की व्यवस्था है पर आप सीधे झरनों से भी पानी भर सकते हैं |
लगभग 11 बजे हम लिंचौली पहुँच गए, यहाँ मेडिकल ऐड उपलब्ध है | यहाँ एक मेक शिफ्ट अस्पताल है और दो तीन ढाबे हैं जहाँ आराम से गरमा गरम आलू पराठे का मजा ले सकते हैं | सामने एक अच्छा खासा गाँव दिख रहा, बढियाँ बने मकान खूबसूरत रंगों से रँगे हैं, नदी के उस पार स्थित ये गाँव कभी यात्रा मुख्य मार्ग पर स्थित था पर अब ये एकदम वीरान है | गाँव के पास से जाता हुआ पूरा का पूरा रास्ता बह चुका है बस किसी तरह ये गाँव बच गया पर अब ये सुनसान है |
लगभग 2 घंटे की खड़ी चढ़ाई के बाद हम टॉप पर पहुँच गए, यहाँ से आगे तीन किमी मंदिर तक लगभग सपाट रास्ता है | थोड़ी देर चलने के बाद हम गढ़वाल मंडल विकास निगम के कॉटेज स्टे के पास पहुँच गए,ये मंदिर से 1 किमी पहले है |
ऑफ सीजन होने के कारण अधिकतर कमरे खाली हैं,ये एक डारमेट्री टाइप स्टे है| यहाँ हर कमरे में 6 बेड हैं और दो अटैच्ड बाथरूम और साथ ही साथ गीजर की सुविधा भी है | ये पूरा परिसर ही नया है और बहुत साफ़ सुथरा है और यहाँ इस तरह की 6-7 डारमेट्री हैं |
हमारी डारमेट्री में हम दो ही लोग हैं और हम आराम से नहा के तैयार हो गए, मंदिर दर्शन और जलाभिषेक का समय सायं चार बजे तक का ही है और अभी तीन बज चुके थे, तो हमने भोजन के बाद कुछ देर आराम किया और शाम पाँच बजे मंदिर दर्शनों के लिए निकले |
मंदिर यहाँ से 1 किमी है और रास्ता सपाट है, थोड़ी देर बाद हम नए बने घाट तक पहुँच गए यहाँ एक ओर से मंदाकिनी और एक ओर से सरस्वती नदी आकर मिलती है और आप आराम से बैठकर जल भर सकते हैं और अगर आपमें साहस है तो नहा भी सकते हैं, पर बाल्टी से| अभी शाम का समय है और तापमान 4 – 5 डिग्री के आस पास है, थोड़ा जल हमने अपने ऊपर छिड़का और भगवान केदार के दर्शन को निकल लिए |
घाट के आगे तीन हैलीपेड हैं और इसके आगे नेहरु माउंटेनियरिंग इंस्टिट्यूट का कॉटेज स्टे है ये भी बिल्कुल वैसा ही है जिसमे हम रुके हैं, हाँ पर ये मंदिर के बिल्कुल पास है तो थोड़ा ज्यादा सुविधाजनक है और इसके बस चंद कदमों की दूरी पर है भगवान शंकर का परम धाम, केदारनाथ | मंदिर के ठीक पीछे केदारनाथ की बड़ी हिमान्छादित पहाड़ियाँ हैं, जो कि अब लगभग बादलों से घिर चुकी हैं फिर भी कभी बादलों के थोड़ा हटने पर इनके दिव्य दर्शन होते हैं |
मंदिर पूरी तरह से सजा है और आप अन्दर जा सकते हैं पर गर्भ गृह में पूजा आरती की तैयारी और श्रंगार चल रहा है और इस कारण जाने की अनुमंति नहीं है, संध्या आरती में जो कि सात बजे होनी थी अभी एक घंटा बाकी था तो हम आस पास टहलने लगे | मंदिर के ठीक पीछे ही दिव्य शिला है जिसने आयी आपदा के समय मंदाकिनी की धारा मोड़ कर मंदिर की किसी भावी क्षति से रक्षा की, ये शिला कोई 6-7 फीट लम्बी और 3 फीट ऊँची है और मंदिर आये श्रद्धालु इसका भी दर्शन अभिषेक करते हैं |
इस दिव्य शिला को प्रणाम कर हम थोड़ा आगे बढ़े, अभी यहाँ आपदा से आया हुआ बहुत सा मलबा पड़ा है और निर्माण कार्य अपनी पूरी गति से चल रहा है | थोड़ा आगे वी.आई.पी हैलीपेड और गेस्ट हाउस है और इसके आगे सेफ्टी वाल बन रही है ताकि आने वाले समय में किसी प्राकृतिक आपदा से बचाव हो सके | इसके साथ ही साथ और भी बहुत सा रोड निर्माण कार्य एवं अन्य निर्माण चल रहे हैं बहुत सी बड़ी मशीनरी इस कार्य में लगी हुई है | थोड़ी देर इसी प्रकार मौका मुआयना करने के बाद हम वापस मंदिर प्रांगण में आ गए |
थोड़े समय के बाद आरती आरंभ हुई, फिर पुजारी आरती लेकर बाहर आये और सबने आरती ली | इसके बाद मंदिर में प्रवेश किया, मंदिर में पांचो पांडवों, माता कुंती, द्रौपदी और भगवान लक्ष्मी नारायण की प्रतिमाएँ हैं और मुख्य प्रवेश द्वार के ठीक सामने गर्भ गृह है | ठीक सामने बाहर नंदी जी विराजमान हैं, और इस समय मंदिर पूरी तरह झालरों से सजा हुआ है, बाहर बहुत ठण्ड है पर अन्दर बिल्कुल नहीं है और वातावरण बहुत दिव्य है |
भगवान केदार ज्योतिर्लिंग इस समय फूलों से सजा हुआ है और अभी गर्भगृह के दरवाजे से ही दर्शन की अनुमति है क्यूंकि जल अब कल प्रातः ही चढ़ाया जा सकेगा, यहीं माथा टेककर हम बाहर आ गए | मंदिर परिसर में बहुत से साधु- सन्यासी भी बैठे मिलेंगे जो अलग अलग तरह की वेश भूषा बनाकर रखते हैं और आशीर्वाद देते हैं | फोटो खींचकर हम वापस अपने होटल आ गए और खाना खाकर सो गए |
सुबह हम जल्दी जगे और 6 बजे वापस मंदिर पहुँच गए | यहाँ पहुँचने से पहले हमने घाट जाकर पवित्र मंदाकिनी और सरस्वती नदी का जल छिड़का और एक बोतल में भर लिया, इसी बोतल में हमने गंगोत्री से लाया थोड़ा जल पहले ही भर लिया था | मंदिर के पास प्रसाद, फूल आदि लेकर नंदी जी को प्रणाम कर प्रवेश किया | अभी ज्यादा लोग नहीं हैं वैसे भी ऑफ सीजन होने के कारण इस समय लोग कम ही आते हैं | गर्भ गृह में लोगों ने भगवान को चारों ओर से घेरा हुआ था, ज्योतिर्लिंग बहुत बड़ा है और कूबड़ के आकार का है, थोड़ी देर बाद हमें जगह मिली तो भगवान का जलाभिषेक किया और माथा टेका |
इतनी अच्छी यात्रा और दर्शन के लिए भगवान् का कोटि कोटि धन्यवाद् किया और पुनः आने का अवसर प्राप्त हो ऐसी प्रार्थना की | मंदिर के पीछे ही केदारनाथ की दिव्य पर्वत चोटियाँ हैं जो उगते सूर्य की पड़ती किरणों से स्वर्णिम वर्ण में रंगी हैं और इन सबसे मंदिर की अद्भुत छटा देखते ही बनती है |
वास्तव में ये एक दिव्य स्थान है, अगर इसके प्राकृतिक रूप को बरकरार रखते हुए निर्माण कार्य हों और यात्रा सीजन में आने वाले श्रध्दालुओं को थोडा नियंत्रित कर लिया जाय तो अनेक आपदाओं से बचा जा सकता है पर इसके लिए आवश्यक है कि धार्मिक स्थानों को धार्मिक ही रहने दिया जाय और इनके पर्यटीकरण से बचा जाये | हर मिनट उड़ते हेलीकाप्टर भी वाइब्रेशन पैदा करते हैं और जो ध्वनि प्रदूषण होता है सो अलग तो इनको भी नियंत्रित करने की आवश्यकता है |
यही सब मन में सोचते हुए हम 2 बजे सोनप्रयाग वापस पहुँच गए और वहाँ से 3 बजे गुप्तकाशी पहुँच गए जहाँ हमने प्राचीन विश्वनाथ मंदिर के दर्शन किये, यहाँ भगवान के अर्ध नारीश्वर स्वरुप के दर्शन होते हैं | रात गुप्तकाशी में बिता कर हम अगले दिन भगवान श्री बद्रीनाथ दर्शन के लिए निकल गए |
ॐ नमः शिवाय ||