रामायण
| | जय श्री राम | |
जीवन में इस नाम से बढ़कर कोई नाम नहीं है, इसकी महिमा अपरंपार है, यहाँ तक कहा जाता है कि स्वयं प्रभु भी अपने नाम की महिमा का सकल वर्णन नहीं कर सकते हैं, तो फिर हम सब की बिसात ही क्या | हाँ बस इतना पता है की इस नाम के जप से अवश्य कल्याण होता है |
श्री राम ऐसे महामानव है जिन्होंने मर्यादा से परिपूर्ण एक आदर्श जीवन जिया और महामानवों का आचरण, उनके द्वारा किये गए कर्म ही वास्तव में धर्म का रूप लेते हैं, वही धर्म हो जाता है और इसी को इस संस्कृति ने धर्म कहा है | आज हम सब किसी और ही चीज़ को धर्म कहते हैं और वास्तव में ये बाहर से आया हुआ विचार है जो की किसी विश्वास या किताबी चीज और उसे अपनाने को ही धर्म मानता है और हमारी भी सनातन संस्कृति और परंपरा को भी हिन्दू धर्म का नाम दे दिया, जबकि वास्तव में हिन्दू तो कोई धर्म ही नहीं है ये तो जीवन जीने की कला और और संस्कृति है और एक अत्यंत उच्च सभ्यता है जिसने किसी भी विश्वास को तब तक नहीं मन जब तक उसे स्वयं परख नहीं लिया ये तो हमेशा से एक खोजने वाली सभ्यता रही है और जिसकी परिणिति पूर्ण स्वतंत्रता अथवा मोक्ष रही है | पर दूसरे बाहर से आये मतावलंबियों ने इसकी विशेषता को न समझते हुए अपने ही समान एक मत का नाम दे दिया और भारत में रहने वाला हर व्यक्ति हिन्दू कहलाया |
श्री राम से बड़ा महापुरुष शायद ही दुबारा कभी धरती पर अवतरित हो, तो आज जब नित दिवस ही किसी न किसी घटना और विनाश से हमारा सामना पड़ता है और लोगों का आचरण हमें क्षुब्ध करता है और धरती एक विनाश के मुँह पर खड़ी है तो ये समय इस आचरण से प्रेणना प्राप्त करने का है |
मंगल भवन अमंगल हारी |
द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ||
जो मंगल करने वाले हैं और अमंगल को हरने वाले हैं वे दशरथ नंदन प्रभु श्री राम मुझ पर दया करें |
मैंने जितना भी श्री राम के बारे में जाना है और पढ़ा है उसे अपनी समझ के अनुरूप प्रस्तुत करने का प्रयास करूंगा वैसे श्री रामचरित मानस में सुन्दरकाण्ड ही मैंने सबसे अधिक पढ़ा है तो प्रारंभ यहीं से करते हैं |
ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
प्रनवऊँ पवन कुमार खल बन पावक ज्ञान घन
जासु ह्रदय आगार बसहिं राम सर चाप धर
श्री गुरु चरन सरोज रज निज मन मुकुर सुधारि, वरनऊँ रघुवर विमल जसु जो दायक फल चारि |
बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौ पवन कुमार, बल बुद्धि विद्या देहु मोहि हरुह कलेश, विकार ||
|| जय श्री राम ||
मैं पवन पुत्र श्री हनुमान जी को प्रणाम करता हूँ जो दुष्टों के लिए वन में प्रज्वलित अग्नि के समान और जो ज्ञान के भंडार हैं एवं जिनके ह्रदय रूपी भवन में प्रभु श्री राम धनुष - बाण सहित विराजते हैं |
श्री गुरु जी के चरण कमलों की धूल से अपने मन रूपी दर्पण को पवित्र कर, श्री रघुबीर जी के निर्मल यश का वर्णन करता हूँ, जो चारों फल अर्थात् धर्म, अर्थ,काम और मोक्ष को देने वाला है | हे पवन कुमार ! मैं आपका सुमिरन करता हूँ,आप तो जानते ही हैं कि मेरा शरीर और बुद्धि निर्बल है, मुझे शारीरिक बल, बुद्धि और ज्ञान दीजिये और मेरे दुखों एवं दोषों का नाश कर दीजिये |
आज हम सब सत्ता एवं शासकों से उम्मीद किये रहते हैं और पूरा न होने पर दुखी होते रहते हैं | उम्मीद करना बुरा नहीं है पर किससे उम्मीद कर रहे हैं ये अवश्य महत्व रखता है | आज सत्ता बड़ी चीज है और सारी लड़ाई इसी के लिए है, सारे अपराध, घोटाले, दुराचरण और अधिकतर समस्याओं की जड़ यही है | येन केन प्रकारण किसी प्रकार सत्ता प्राप्त करनी है और राज करना है, आज आप किसी से ये उम्मीद कर सकते हैं कि वो किसी की अपेक्षा पूरा न होने पर सत्ता का त्याग कर देगा ? त्याग तो छोड़िये और अपेक्षा भी छोड़िये अगर कहीं से कोई आवाज उठती है तो उसे भी दबाने का प्रयास होता है और प्रायः दबा ही दिया जाता है | जैसा आचरण ऊपर बैठे और शक्तिशाली लोग करते हैं जनता प्रायः उनका अनुकरण करती है और कोई संशय नहीं कि आज सब ओर पापाचरण, व्याभिचार, अपराध, हिंसा, भ्रष्टाचार और बेईमानी का बोलबाला है और जनता बुरी तरह पिस रही है पर बात तो ये भी है की अधिकांश लोग स्वयं भी इसी प्रकार का आचरण कर रहे हैं |
और ऐसे समय प्रभु श्री राम का चरित्र जरा सुमिरन कीजिये, पिता की आज्ञा के लिए राज सिंहासन का त्याग, प्रजा के कहने पर गर्भवती पत्नी का त्याग सिर्फ इसलिए की प्रजा संतुष्ट हो सके , कितना बड़ा पत्थर उन्होंने अपने सीने पर रखा होगा ? बस यही आचरण धर्म कहलाता है, यही सनातन धर्म है और यही ऋषि परंपरा है और यही चरित्र राष्ट्र का चरित्र निर्माण करता है और इसी आचरण और धर्म ने भारत को सदियों - सदियों से जीवित रखा है और इस देश को महान बनाया है वो देश जो ज्ञान लुटता रहा और वो देश जो निर्वाण की खोज करता रहा |
क्या आज का भारत वही भारत है?
आप मेरे ब्लॉग पर भी पढ़ सकते हैं ...सुंदरकाण्ड
जैसे जैसे समझ बढ़ेगी और लिखने का प्रयास करूंगा ...