|| जय श्री अमरनाथ ||
|| ॐ नमः शिवाय ||
बात 2011 की है, इसके पहले भी 2010 में मैंने प्रयास किया था, पर किन्ही कारणों से नहीं जा पाया था | कुछ निराशा अवश्य हुई थी पर संकल्प और भी अधिक ढृंढ हो गया था | कश्मीर जाने की बात सुनकर वैसे भी थोड़ी सी घबराहट परिवार के सदस्यों को होती ही है, और यही मेरे साथ हुआ | मैंने 2010 में ये बात मम्मी – पापा को बताई थी और 2011 में उनका आशीर्वाद मिला |
एक और भी सुविधा हुई कि 2011 तक आवेदन ऑनलाइन होने लगे थे तो इस बार जब अमरनाथ यात्रा के बारे में घोषणा हुई तो ज्यादा विलम्ब न करकर मैंने आवेदन कर दिया | मेरे एक सहयोगी पाण्डेजी, जो विगत वर्ष भी मेरे साथ जाना चाहते थे, उन्होंने ने भी मेरे ही साथ आवेदन कर दिया और हम दोनों ने दिन निश्चित कर ऑनलाइन फॉर्म सबमिट कर दिया | जुलाई मध्य का समय था, जब हमें यात्रा आधार शिविर पहुँचना था और हमने शायद जून में आवेदन किया था |
आज जब इस यात्रा को 9 वर्ष हो आये और 2020 आ गया तब, मुझे अचानक ही यह स्मरण हो आया और लिखने बैठ गया | पीएसयू की नौकरी ज्वाइन करे शायद 3 वर्ष ही हुए थे और अगर निचले पहाड़ों जैसे हरिद्वार, ऋषिकेश को छोड़ दिया जाय तो बचपन में की गयी पूर्णागिरी माता की यात्रा ही मेरी एकमात्र पहाड़ी यात्रा थी और उस समय मैं बहुत ही छोटा था तो अधिक कुछ याद नहीं |
पर रह – रह कर पर्वत मेरी स्मृतियों में आते रहे, जैसे मुझे बुलाते रहे और आज जब मैंने कई यात्राएं कर ली हैं, तब भी वो पुकार मुझे वैसी ही सुनाई पड़ती है, पता नहीं हो सकता है कि ये अंतर्मन की पुकार हो क्योंकि हिमालय के दर्शन ही बड़े भाग्य से होते हैं, और इस दिव्य पर्वत के दर्शन कर मानव धन्य हो जाता है | भगवान को तो शायद कुछ ही लोगों ने देखा होगा, पर मनुष्य निराश न हो और इस जन्म में ही कुछ ईश्वरीय तत्व और सत्ता के दर्शन कर सके, इसीलिए विधाता ने इस पावन धरा पर अपने आप को जैसे हिमालय के रूप में अवतरित किया है |
हमें 11 जुलाई को श्रीनगर पहुँचना था, पर राजधानी में 1 वेटिंग रह गयी तो हमने आखिरी छड़ों में दिल्ली से श्रीनगर की फ्लाइट बुक की | फ्लाइट 12 की थी तो हमने 11 का दिन दिल्ली की चिलचिलाती और चिपचिपी मानसूनी धूप में यहाँ – वहाँ घूमकर बिताया | 12 को फ्लाइट से हम दोपहर में २ बजे के आसपास श्रीनगर पहुँचे होंगे और वहाँ से इनोवा बुक कर पांच बजे बैलगाँव पहुँच गए | बैलगाँव ही पहलगाम का पुराना नाम है |
श्रीनगर एक वैली में स्थित है, और रास्ता सपाट है | कोई 90 किमी का रास्ता है | बीच में एक जगह रूककर चाय – पकौड़ी का आनंद लिया और फिर सीधे बैलगाँव पहुँच गए | श्रीनगर जहाँ लगभग 1500 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है, वहीँ यह जगह लगभग 2700 मीटर की ऊंचाई पर है और यह बिल्कुल पहाड़ी इलाका है, जिससे इसकी अलग – अलग जगहों की ऊँचाई भी अलग – अलग है | गाड़ी से उतरते ही पोनी वालों ने घेर लिया कि चलिए यहाँ के सबसे ऊँचे पॉइंट पर ले कर चलते हैं, बड़ी सुन्दर जगह है | पीछे ही पड़ गए थे तो हमने भी हामी भर दी पर पहले एक होटल लेकर वहाँ सामान रखा | ये होटल मुख्य सड़क से थोड़ी दूरी पर पास बहती सुन्दर और संकरी नदी को पार कर स्थित था |
होटल छोटा था, कोई तीन – चार कमरे रहे होंगे पर साफ़ और व्यवस्थित था | अटैच बाथरूम था और गीजर की भी व्यवस्था था | जुलाई का महीना था, हम चलकर आये थे इसलिए अभी इतनी ठण्ड नहीं मालूम पड़ रही थी | मुख्य मार्ग से थोड़ी दूरी पर ही वो जहग थी जहाँ यात्रिओं के लिए कैंप साईट थी | यात्रा का समय था और शाम हो रही थी दूसरा इस समय इतने श्रद्धालु यहाँ आते हैं कि कैंप का पता करना और होटल ढूँढना शाम के समय थोड़ा मुश्किल हो सकता है इसीलिए न चाहते हुए भी गाड़ी वाले द्वारा कराये इस होटल में हम रुक गए | ये मुख्य मार्ग से थोड़ा चढ़ाई चढ़कर था पर वैसे अच्छा ही था और किराया भी कम, आठ सौ रूपए में डबल बेड रूम |
चावल के खेत
बैसरन नेशनल पार्क