नयन सरोवर, ब्रह्म कमल, किन्नौर रेंज
श्रीखंड महादेव से थोड़ा ही पहले,ग्लेशिअर
भगवान श्रीखण्ड महादेव, पार्वती बाग और रस्ते में मिलते ग्लेशिअर
भोले बाबा की कृपा से हम धीरे धीरे नीचे उतर आये, ये एक वैली है जो बहुत खुबसूरत है, यहाँ चरवाहे अपनी भेड़ चराने आते हैं, और बहुत से छोटे बड़े टेंट हैं | थाचरू से जाते समय मैडी भाई ने बताया था वो यहीं मिलेंगे, थोड़ा पता करने पर उनका टेंट मिल गया |
यहाँ आते आते हमें चार घंटे लग गए और मैडी रात में आठ बजे अँधेरे में थाचरू से यहाँ के लिए निकला था, इन कठिन रास्तों में, रात के समय वो भी अकेले, हमें तो सुनने में ही अजीब लग रहा था, उसने बताया वो 10-10:30 बजे यहाँ आ गया था, हमारे कारण उसे इतनी रात हुई वरना तो वो आराम से 6-7 बजे तक यहाँ आ जाता, इस निस्वार्थ सेवा भाव; वो भी बिना किसी कारण से, के लिए हमने उसे धन्यवाद् दिया | मैडी के यहाँ दो तीन टेंट हैं, एक टेंट में हमने थोड़ी देर आराम किया और चाय पी |
15 मिनट यहाँ रुकने के बाद, हम भीम द्वार के लिए आगे बढे, थाचरू से काली टॉप तक तीन किमी का और फिर आगे सात किमी का सफ़र है, यहाँ से अभी लगभग 6-7 किमी का रास्ता और तय करना था | घने काले बादलों के बीच हमने चलना शुरू किया, बारिश अभी भी हो रही थी, और थोड़ा आगे बढ़ते ही एक बहुत बड़ा झरना दिखाई दिया, झरना जहाँ गिर रहा था उसके चारों ओर मोटी बर्फ की पर्त जमा थी, और पानी का वेग काफी था, घने बादलों और कड़कती बिजली के बीच ये सुन्दर झरना भी काफी भयंकर और डरावना लग रहा था, किसी तरह अगल बगल से निकलते हुए हमने इसे पार किया, पर ये तो बस शुरुआत थी |
और थोड़ा आगे बढ़े तो एक के बाद एक, इससे भी विशालकाय दो और झरनों ने हमारा स्वागत किया, अब मन में दुविधा उत्पन्न हो गयी | ये इतने बड़े और सुन्दर हैं कि बस देखते ही बनते हैं, साथ ही साथ उतने ही भयंकर भी हैं और इन काले बादलों के बीच और भी खतरनाक लग रहे हैं, विशाल और सुनील यहाँ फोटो और सेल्फी लेने लगे, और वो दोनों ही क्यों आस पास निकलते सभी लोग यहाँ मानों ठिठक से गए थे, पर मौसम को देखते हुए मुझे थोड़ी चिंता हो रही थी, भीम द्वार अभी भी दूर है और आगे के ट्रेक का कुछ पता नहीं है, इसलिए जल्दी यहाँ से निकलना चाहिए |
दोनों को बुलाकर और बहते तेज़ पानी के बीच बिखरे हुए छोटे बड़े पत्थरों में रास्ता ढूँढकर, हमने उन्हें पार किया, आगे रास्ता थोड़ा ख़राब हो रहा था, लगातार बारिश के बीच मिटटी कीचड़ में बदल गयी थी, और एक एक कदम आगे बढ़ाना मुश्किल हो रहा था, विशाल के जूतों में कीचड़ घुस गया था, और सुनील बचने के लिए, पगडण्डी के ऊपर घास में से चलने लगा, पर ये काफी खतरनाक था, कीचड़ में तो बस पैर ही गंदे होंगे पर घास में फिसलने पर संभलना मुश्किल था, इसलिए उसे नीचे बुलाया | वापस आते यात्रियों ने बताया कि भीमद्वार तक ऐसा ही रास्ता है, एंकल लेंथ शू के कारण कीचड़ मेरे पैरों में तो नहीं घुसा पर जूते और पैंट पूरी कीचड़ से भर गयी, और छपाक करते हम किसी तरह आगे बढ़े |
लगभग दो किमी इसी तरह संघर्ष करते हुए हम चलते रहे, इसके बाद मिटटी थोड़ी कम हुई; हम अब एक बड़े से मीडो (चारागाह) की और बढ़ रहे थे, थोड़ा आगे जाकर कुछ टेंट्स मिले पर भरे हुए थे, इसलिए चाय खुले में ही बारिश के बीच पी | ये एक मजेदार सीन था, समझ में ही नहीं आ रहा था की चाय पी रहें हैं या पानी, अब चाय की गिलास पोंचो के अन्दर ले ली, और किसी तरह चाय पी | एक दो किमी और चलने के बाद एक बड़ी सी वैली दिखाई पड़ी, चारों ओर पहाड़ों से घिरी हुई, हरे भरे घास के मैदान और दूधिया झरनें, दृश्य किसी स्वर्ग से कम नहीं था, यही भीम द्वार है | हरे भरे घास के मैदानों में विचरती भेड़ें, चरवाहों के समूह और ख़ूब सारे टेंट्स, यहाँ रहने और जगह की कोई कमी नहीं, और हमें आसानी से एक तीन लोगों वाला टेंट मिल गया |
लगभग चार हज़ार मीटर की ऊंचाई पर स्थित भीम द्वार, हम शाम के पांच बजे पहुँच गए, यहाँ ठण्ड बहुत है और भीगे होने के कारण हमें और भी ठण्ड लग रही थी, सबसे पहले हमने कीचड़ से सने जूते और कपड़े उतारे, तौलिया से कसकर शरीर पोछने के बाद सूखे कपड़े और उपर से दो तीन वूल लेयर्स डालीं, फिर गंदे कपड़े और जूते पास ही लंगर के पास बहते पानी में साफ़ किये, और टेंट के ऊपर फैला दिए, फिर लंगर में आकर चाय पी और दाल चावल खाया | टेंट एकदम नया है और अन्दर तीन स्लीपिंग बैग और मैट है, बाहर अलग से लगेज स्पेस है, इसलिए कोई प्रॉब्लम नहीं हुई , यहाँ हमें दो रात रुकना था, इसलिए टेंट वाले से पहले ही बात कर ली, सात बज रहे थे, और अँधेरा हो गया था, थोड़ी देर बात चीत करके हम सो गए |
जल्दी उठना था, इसलिए नींद सही से नहीं आयी, दो बजे का अलार्म लगाया था, पर हर घंटे नींद खुल रही थी और दूसरा स्लीपिंग बैग में सोने की आदत न होने के कारण भी अच्छी नींद नहीं आयी | रात में सोने से पहले सारा सामान पैक कर लिया था, वापस रात इसी टेंट में बितानी थी इसलिए जरूरी सामान निकालकर बाकि रुकसैक में डाल दिया और टॉर्च, पोंचो, पानी की बोतल, प्रसाद और कैमरा एक छोटे बैग में डाल दिया | हनुमान जी का भक्त होने के कारण मैं अपने साथ सुन्दर कांड की किताब साथ लाया था, वो भी साथ ले ली और रात में सोते समय कुछ चौपाइयाँ पढ़ीं |
खैर दो बजे अलार्म बजा, टेंट से बाहर निकलकर देखा, हल्की बूंदें पड़ रही थीं, कपड़े पहने और विकास और सुनील को उठाया, सुनील तो उठ गया पर विकास ने आधा घंटा और लगाया और हम तीन बजे भगवान श्रीखंड महादेव के दर्शन के लिए निकल पड़े | ॐ नमः शिवाय | हर हर महादेव के जयकारे के साथ हमने अपनी यात्रा आरंभ की, दो दिनों तक 11-12 किलो का पैक उठाने के कारण आज कंधे बड़ा रिलैक्स फील कर रहे थे, पर ऊंचाई पर एक एक ग्राम महत्व रखता है इसलिए पैक जितना हल्का हो उतना ही अच्छा | अभी अँधेरा है, दूर इक्का दुक्का टोर्चेस दिख रही हैं, और रास्ता समझ नहीं आ रहा है, 10 मिनट तक हम यूँ ही टेंट के आस पास घूमते रहे फिर जाकर हमें रास्ता मिला | एक – दो झरने पार करते ही सीधी चढ़ाई शुरू हो गयी और घास – फूस का स्थान अब शिलाओं और पत्थरों ने ले लिया था, और इन्होंने पहले से ही धीमीं हमारी गति और धीरी कर दी, बारिश अब रुक गयी थी, इसलिए हमने पोंचो और रेन कोट उतार दिए, चलने से पहले दो तीन लेयर्स डाल ली थीं, जो अब अपना प्रभाव दिखा रही थीं, मौसम वैसे तो बहुत ठंडा था पर चलने के कारण हल्की गर्मी लगने लगी थी इसलिए मफलर, नेक वार्मर, और ग्लव्स वापस पैक में डाल दिए |
भीम द्वार से पार्वती बाग लगभग 2-2.5 किमी है और चलते – बैठते हम 6-6:30 बजे यहाँ आ गए, पहले भीम द्वार की जगह यात्रा का पड़ाव यहीं होता था, पर ये जगह किसी स्वर्ग से कम नहीं है और टेंट्स , भीड़ के कारण इसको नुकसान पहुँच रहा था इसलिए अब यहाँ यात्रा पड़ाव नहीं है | यहाँ से श्रीखंड महादेव के साक्षात् दर्शन होते हैं, भोले नाथ को प्रणाम कर हम आगे बढ़े | यहाँ से गौरी कुंड तक का एक डेढ़ किमी का रास्ता शिलाओं और पत्थरों के ऊपर से जाता है और इन्ही के किनारे किनारे हमें एक बहुत खुबसूरत और अदभुत् चीज़ देखने को मिली: ब्रह्म कमल | ये अदभुत पुष्प ऊँचे हिमालयी क्षेत्रों में ही मिलता है और जुलाई – अगस्त में ही खिलता है, पर हम इतने भाग्यशाली नहीं थे, पुष्प काफी बड़ा और खिलने लायक हो गया था पर अभी खिला नहीं था, चारों ओर पहाड़ों से घिरा और ब्रह्म कमल से भरा हुआ ये क्षेत्र अपने आप में अदभुत एवं अलौकिक था |
छोटे बड़े पत्थरों को पार कर हम लगभग 9 बजे गौरी कुंड पहुँचे, ये एक सरोवर है, बर्फ से ढके पहाड़ इसे तीन ओर से घेरते हैं, आधा सरोवर ही बर्फ से ढका था और आधे में पानी था, यहाँ माता की एक छोटी सी प्रतिमा है जहाँ लोग पूजा का सामान, धूप अगरबत्ती आदि चढ़ाते हैं, ये ज्यादा बड़ा नहीं, और ज्यादा गहरा भी नहीं है, माता गौरी को प्रणाम कर हम सरोवर के किनारे पहुँच गए | यहाँ ज्यादा भीड़ नहीं है, चार पाँच यात्री नहा रहे हैं, और कुछ बोतल में सरोवर का पवित्र जल रे रहे हैं, नहाते लोगों को देखकर हमने भी नहाने की सोची, पानी बर्फीला था इसलिए पहले छूकर देखा— छूते ही हाथ सुन्न; फिर नहाते हुए लोगों को देखा, समझ नहीं आया कि ये किस मिटटी के बने हैं | थोड़ा पानी पैरों पर और थोड़ा सर में छिड़का, और बोतल में भरा | कुंड गहरा नहीं है और बर्फ पिघल पिघल कर आ रही है, इसलिए चुल्लू में लेकर हाथ से ही पानी भरा, अब तो हाथ पूरी तरह से सुन्न हो गए, पानी में डूबे होने के कारण यही हाल पैरों का था |
मौसम साफ़ था, सूरज की किरणों से हमने कुछ गर्मी लेने की कोशिश की पर सफलता नहीं मिली, लगभग 10 मिनट तक हाथों और पैरों की अंगुलियाँ पूरी तरह जकड़ी रहीं, पंजे सुन्न होकर फूल गए और बड़ी मुश्किल से हम जूते मोज़े पहन पाए | यहाँ आये आधा घंटा हो चूका था, और श्रीखंड अभी भी बहुत दूर था, पश्चिम दिशा से बादल भी तेज़ी से बढ़े चले आ रहे थे, इसलिए हमने चलने का मन बनाया, पार्वती कुंड से ही लगा हुआ एक पहाड़ है जिसकी चोटी तक सीधी चढ़ाई है, ये बहुत ऊँचा है और रास्ता बस पत्थरों के बीच से जाता है, या यूँ कहें रास्ता नहीं है और आपको शिलाओं और पत्थरों के बीच से स्वयं ही बनाना होता है, लाल रंग से बने एरो आपका मार्गदर्शन करते हैं, ऊंचाई इतनी है की चढ़ते यात्री चीटी की तरह दिख रहे थे, और हमें लगा की इस चोटी पर ही भगवान के दर्शन होंगे |
ॐ नमः शिवाय बोलकर हमने चढ़ना चालू किया, हर – हर महादेव, भोले नाथ - सबके साथ की ध्वनि से आकाश गुंजायमान हो गया, यात्रियों के साथ साथ यहाँ बहुत से बाबा भी आते हैं, उम्र ज्यादा होने के बावजूद ये तेज़ी से चलते हैं , नंगे पैर भोले का नाम लेकर ये चलते चले जाते हैं और आपको भी प्रेरित करते हैं | थोड़ा चलने पर ही सांस फूल जाती है, और हम आराम से बैठ जाते हैं – यही सिलसिला अगले एक घंटे तक चलता रहता है, हम चलते कम हैं और बैठते ज्यादा हैं – लगभग सभी साथी यात्रियों का यही हाल था | डेढ़ घंटे इसी तरह चलते हुए हम इस पर्वत के ऊपर पहुँच गए, ये एक चौकाने वाला दृश्य था, हल्की बर्फ की लेयर और कुछ देर समतल रास्ते के बाद एक और पहाड़ी थी, और श्रीखंड महादेव बहुत दूर और बहुत ऊंचाई पर दर्शन दे रहे थे, बीच में एक नहीं, कई सारी पहाड़ियां थीं, जो पहले से भी ज्यादा सीधी और खड़ी थीं और बहुत दूर श्रीखंड से लगा हुआ एक लगभग 70 के एंगल पर पतला सा ग्लेसिअर दिख रहा था, जिसे पार कर भगवान महादेव के दर्शन करने थे, ये रास्ते अत्यंत दुर्गम, बेहद ऊँचे और खतरनाक नजर आ रहे थे, ये सब देखकर लगा कि अभी तक तीन दिनों में हम कुछ चढ़े ही नहीं हैं, असली चढ़ाई और यात्रा तो अब शुरू हुई है, बचे हुए दो किमी में हमें 1500 मीटर और चढ़ना था | ये सब देखकर एक बार तो हिम्मत जवाब दे गयी, और लगा शायद पहुँच पाना संभव नहीं है, गला सूख गया था, मैं वहीँ बैठ कर पानी पीने लगा |
चिंता का एक और कारण, दूर से दिखता वो ग्लेसिअर था, इस मौसम में बर्फ लगभग पिघल जाती है और इतनी ऊंचाई पर आपको सामान्यता बर्फ नहीं मिलती है, पर मेरा ये अनुमान भी गलत साबित हुआ, कुछ लोगों ने बताया की इस साल बर्फ कम है, वरना तो यहाँ बहुत ज्यादा बर्फ मिलती है, सुनकर कुछ तसल्ली मिली |
मन में भगवान आशुतोष को याद कर और जय बजरंग बली बोलकर मैं उठा, विकास भी बहुत थक गया था और सुनील थोड़ा आगे निकल गया था, भगवान भोले का जयकारा लगा हम आगे बढ़े, एक के ऊपर एक पड़े छोटे बड़े पत्थरों को पार कर हम एक और पहाड़ी के ऊपर पहुँचे, किनारे थोड़ी देर बैठ कर आराम किया | बादल अब पूरी तरह से आ चुके थे, कभी कभी बीच से सूर्य भगवान के दर्शन हो जा रहे थे और ऐसे ही एक छण, जब बादल थोड़ा सा साइड में खिसके तभी एक अदभुत दृश्य ने हमारा मन मोह लिया | किन्नौर की बर्फ आच्छादित चोटियाँ सामने थीं, ये चोटियाँ जो अभी तक नज़र नहीं आ रही थीं, इस पहाड़ी से साफ़ दिख रही थीं, आसमान को चूमती ये पर्वत मालाएं देखने में बड़ी दिव्य और अलौकिक लग रही थीं, लोगों ने बताया कि किन्नौर कैलाश के भी यहाँ से साक्षात् दर्शन होते हैं, पर तब तक बादलों ने फिर से दस्तक दे दी, और हम आगे बढ़ गए |
अब गला सूखने लगा था, पानी ख़त्म हो गया था, साथ चलते लोगों से थोड़ा लेकर काम चलाया, कुछ और चट्टानों को पारकर एक जगह थोड़ा पानी मिला जो पर्वतों से रिसकर बाहर आ रहा था, ये किसी संजीवनी बूटी से कम नहीं था, जी भरकर पानी पिया और आगे बढ़े, अब हम लगभग ग्लेसिअर तक पहुँच गए थे पर अभी एक बाधा बाकी थी |
आगे जाकर एक के ऊपर एक रखी बहुत सारी शिलाएं मिलीं जिनमे कुछ लिखा हुआ सा लग रहा था , ये भीमकाय शिलाएं देखकर एसा लग रहा था कि किसी ने कहीं जाने के लिए सीढियाँ बनाई हैं जो किसी कारण से अधूरी रह गयी हैं पर इतनी बड़ी और भारी शिलाओं का यहाँ तक पहुँचना और इनमे कुछ अंकित होना किसी आश्चर्य से कम नहीं था, पूछने पर पता चला कि ये महाभारत कालीन हैं और भीम द्वारा निर्मित हैं | इनको पारकर ग्लेसिअर चालू होता है , बर्फ पुरानी है और बहुत फिसलन है इसलिए संभल कर चलना पड़ता है, नीचे बहुत तगड़ी ढलान है, भोले का नाम लेकर हम आगे बढ़े, आगे जाकर बर्फ थोड़ी नर्म है जिसे आसानी से पार किया जा सकता है, कुछ और शिलाओं को पारकर हम भगवान श्रीखंड महादेव के ठीक सामने पहुँच गए, पहले माता गौरी और श्री गणेश की प्रतीक दो बड़ी शिलाएं हैं, इनके बाद भगवान भोलेनाथ का लगभग 70 फुट ऊँचा प्राकृतिक शिवलिंग है, जो बीच बीच में कई जगहों से खंडित है, इसलिए इसका नाम श्रीखंड पड़ा, पीछे एक और पहाड़ है जिसे कार्तिकेय कहते हैं |
हम जब ऊपर पहुँचे तब तक बादल पूरी तरह से छा चुके थे, सुनील कुछ देर पहले ही पहुँच गया था और घड़ी दो बजा रहो थी, लगभग 10 घंटे लग गए ये 6 किमी पूरे करने में बिना कुछ खाए हुए, पर भगवान के दर्शन करने की चाह में भूख का अनुभव नहीं हुआ | ये एक अलग अनुभूति थी, पार्वती कुंड से आगे पहली पहाड़ी के ऊपर पहुँचकर जब पहली बार भगवान के दर्शन हुए थे तो यहाँ तक पहुँचना असंभव प्रतीत हो रहा था, भगवान के आशीर्वाद से ये संभव हुआ और ऐसे बहुत से लोगों का भी मन ही मन धन्यवाद किया जिन्होंने रास्ते में पानी पिलाया |
सबसे पहले हमने जूते मोज़े उतारे, एक यात्री से थोड़ा पानी मांगकर हाथ धोये, बैग से प्रसाद, बेल पत्र आदि निकाले और भगवान गणेश और माता गौरी की शिलाओं की पूजा करी, गणेश जी और माता का आशीर्वाद लेकर हम श्रीखंड शिला के पास पहुँच गए जो लगभग 10-15 मीटर की दूरी पर है, अभी बहुत ज्यादा लोग नहीं हैं , शिला अत्यंत विशाल है और बिलकुल पास से ऊपर तक देखना बहुत कठिन है, ये बीच में दो तीन जगह से खंडित है और थोड़ा दूर से देखने में ऐसा प्रतीत होता है मानो स्वयं भगवान भोलेनाथ साक्षात् दर्शन दे रहे हैं, पार्वती और गणेश शिलाएं भी इसी प्रकार का अनुभव कराती हैं |
यहाँ आपको ढेर सारे त्रिशूल मिलेंगे, भक्त इन्हें दूर दूर से अपने साथ लाते हैं और यहाँ चढ़ाते हैं, भगवान को बेल पत्र और प्रसाद अर्पित कर हमने शिला की परिक्रमा की | ये परिक्रमा सिर्फ तीन ओर से ही की जा सकती है , क्योंकि शिला एकदम पहाड़ी की चोटी पर है और चौथी ओर तीव्र ढलान है, पूजा करके थोड़ा समय वहीँ व्यतीत किया | अभी बादल घने हो गए थे, कोहरे ने शिला को लगभग – लगभग ढक लिया था, और बूंदा बांदी शुरू हो गयी थी जिस कारण चारों ओर कुछ दिखाई नहीं पड़ रहा था, वैसे मौसम साफ़ होने पर आप यहाँ से किन्नौर से लेकर रामपुर और चारों ओर दूर दूर तक फैली पर्वत मालाओं का दृश्य देख सकते हैं पर हमारी किस्मत इतनी अच्छी नहीं थी, ढाई बज रहे थे और हमने वापस जाने का निर्णय किया जिससे उजाला रहते वापस भीम द्वार तक पहुँचा जा सके | जूते पहने ही थे कि कुछ याद आ गया, पार्वती कुंड से लाया जल तो भगवान को चढ़ाया ही नहीं, जल्दी से जूते खोले, जल वाली बोतल निकाली और भगवान को जल अर्पित किया, थोड़ा जल बचा लिया वापस ले जाने के लिए | बारिश अब थोड़ी तेज़ हो गयी थी, जल्दी से जूते पहने, पोंचो डाला, एक बार फिर भगवान को प्रणाम कर और सफल यात्रा और दर्शन के लिए धन्यवाद् कर हमने वापसी आरंभ की, वापसी में वही ग्लेसिअर मिला जिसे संभल कर पार किया, जैसे ही ग्लेसिअर ख़त्म होने को आया मैं थोड़ा लापरवाह हो गया और धड़ाम से गिरा, पुरानी बर्फ होने के कारण ये बहुत स्लिपरी है खैर यहाँ ज्यादा खतरा नहीं था क्योंकि ये लगभग समाप्त हो गया था, यही वो आखिरी जगह है जहाँ से आपको सीधे भगवान के दर्शन होते हैं, एक बार और प्रणाम कर हमने नीचे उतरना चालू किया | मैं थोड़ा ज्यादा ही संभल कर उतर रहा था क्योंकि मुझे हमेशा ही चढ़ने से ज्यादा उतरने में कष्ट होता है, जिस कारण विकास और सुनील आगे निकल गए, पांच बजे के आस पास मैं वापस गौरी कुंड पहुँच गया, यहाँ से पार्वती बाग तक पहुँचते साढ़े छह बज गए और अब अँधेरा होने लगा था |
रस्ते में मैं दो तीन जगह और फिसल कर गिरा पर भगवान की कृपा से चोट नहीं लगी, अभी मैंने थोड़ा तेज चलना शुरू किया जिससे अँधेरा होने से पहले वापस भीम द्वार तक पहुंचा जाये पर पत्थरों के बीच बने उबड़ खाबड़ रास्ते ज्यादा तेज चलने नहीं दे रहे, कुछ खाए वैसे भी 16 घंटे हो चुके थे | पार्वती बाग से नीचे ढलान है इसलिए सवा सात बजते बजते टेंट्स दिखने लग गए और साढ़े सात बजे मैं वापस भीम द्वार अपने टेंट पहुँच गया, रास्ते में भीम द्वार से बिलकुल पहले एक लाल धारा दिखाई पड़ी, बिलकुल रक्त वर्ण का पानी, जिसे रात में हम पार कर आगे गए थे, समझ नहीं आया की ये यहाँ कैसे बह रहा है | असल में यहाँ आने से पहले मैंने नेट पर कहीं पढ़ा था कि यहाँ भीम द्वारा एक असुर का वध हुआ था जिसका नाम था बकासुर और उसी का रक्त यहाँ आज भी इस छोटे झरने के रूप में बहता है, खैर जो भी हो पानी एकदम लाल है |
यहाँ से मैं सीधे भंडारे में पहुंचा, बैग, ट्रैकिंग पोल सब साथ है, भूख इतनी लगी है कि खड़ा नहीं हुआ जा रहा, लगातार भूखे चलने से चक्कर सा मालूम पड़ रहा है, पहले जी भर के पानी पिया फिर दाल चावल खाया तब जाकर कुछ जान आयी, खा पीकर टेंट में घुसा देखा कि विकास और सुनील लेटे हैं , वो दोनों आधे घंटे पहले आ गए और खा पीकर आराम कर रहे थे, जूते मोज़े खोलकर और बैग साइड में पटककर मैं सीधे स्लीपिंग बैग में घुस गया |
आज का ट्रेक सबसे कठिन और लम्बा था, और यही समझ आया की भोले की कृपा के बिना इसे करना असंभव है, मन ही मन भोलेनाथ का ध्यान कर और कुछ चौपाई सुन्दर कांड और हनुमान चालीसा की पढ़ मैं सो गया |
भोलेनाथ सबके साथ |
भोलेशंकर सबसे भयंकर ||
भोले की फौज करेगी मौज |||
यही सब जयकारे सुनते सुनते हम यहाँ तक पहुंचे थे और ये मेरे मन में कहीं बस से गए थे , बल्कि साधु सन्यासी भी इन्हें सुन कर आनंदित हो रहे थे और इन्ही जयकारों ने हमारी नैया पार लगाई | विकास और सुनील दोनों सॉफ्टवेर इंजीनियर हैं और उनका पहला ही ट्रेक है, दोनों बहुत खुश हैं, सोने से पहले विकास ने बताया कि अगले साल वो ॐ पर्वत जाने की सोच रहे हैं, कैलाश मानसरोवर जाते समय यह पर्वत पड़ता है , मैंने उन्हें ट्रेक के बारे में अपना अनुभव बताया और कहा कि इसके साथ वो अदि कैलाश का ट्रेक क्लब कर सकते हैं |
सुबह हम देर से उठे , और सात बजे हमने टेंट छोड़ दिया, हमें लगा की थाचरू तक जाना है आराम से दो तीन बजे तक पहुँच जायेंगे, थोड़ी देर साथ चले फिर आगे पीछे हो गए और ये आखिरी बार था इसके बाद दोनों इस यात्रा में नहीं मिले | इन तीन दिनों में हम काफी घुल मिल गए थे और लौटते समय मुझे उनकी कमी खली, इस बार रास्ता सूखा था और भीम तलाई होकर मैं काली घटी पहुँच गया, मौसम साफ़ था और भगवान श्री खंड के दर्शन हो रहे थे, माता काली को प्रणाम कर और सफल यात्रा के लिए मन ही मन धन्यवाद् कर भगवान महादेव का आशीर्वाद लिया और आगे बढ़ा | लगभग दो बजे मैं थाचरू पहुँच गया, दाल चावल खाया और थोड़ा आराम किया | यहीं पर मैंने आखिरी बार घर फ़ोन किया था और अब तीसरा दिन था , बीएसएनएल का नेटवर्क आ रहा था पर मेरा फ़ोन ऑफ था, एक लोकल भाई से फ़ोन मांगकर मैंने बात की, घर वाले थोड़े परेशान थे जब मैंने बताया कि दर्शन हो गए और यात्रा बहुत अच्छी रही तब वो खुश हुए, बात कर मैं एक जगह बैठ गया | टेंट्स अभी सब खाली हैं, दो चार लोग ही दिख रहे हैं, मैंने सोचा क्या किया जाये, सिंघाद से यहाँ आने में सात घंटे लगे थे, मेरे पास पांच घंटे का समय था, अभी थकान बहुत ज्यादा नहीं थी इसलिए मैंने नीचे उतरने का फैसला किया |
वापस डंडा धार की सीधी ढलान, ये ज्यादा मुश्किल नहीं है, पर बुरी तरह थकाने वाली जरुर है और बराठी नाला आते आते मैं पूरी तरह थक चुका था, सात बजने वाले थे और इन 12 घंटों में मैं बीस किमी चला था, खैर यहाँ पानी और खाने के टेंट्स हैं और मैंने दो तीन सेब खाए और आगे बढ़ा | थाचरु से उतरते समय मुझे हमीरपुर के एक ठाकुर जी मिले और रास्ते भर सिंघाद तक साथ रहे, और हम लगभग साढ़े सात बजे वापस सिंघाद पहुँच गए, वैसे तो यहाँ बहुत सारे टेंट्स हैं पर ठाकुर जी कि जान पहचान का एक अच्छा टेंट मिल गया, खाने पीने की यहाँ बढियां व्यवस्था थी जो यात्रा समिति की ओर से थी और तीन चार दिनों के बाद वापस पूरी सब्जी, पनीर चावल का बहुत बढियाँ खाना खाने को मिला|
टेंट बहुत बड़ा है या यों कहें पंडाल है, रात भर चहल पहल रही क्योँ कि बहुत यात्री रात भर पैकिंग करते रहे, मेरी पीठ बहुत दुख रही थी और मैं आराम से लेट गया, मन में यात्रा की कठिनता का विचार बार बार आ रहा था और भगवान से इन यात्रिओं कि कुशल यात्रा की प्रार्थना की |
वास्तव में ये एक विचित्र अनुभवों से भरी हुई यात्रा है, भोले नाथ की कृपा के बिना इसका पूरा होना असंभव है, जब आप वापस लौट आते हैं तब मन एकदम शांत हो जाता है, एक विराट सा अनुभव होता है जिसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता और शायद इसीलिए हिमालय इतना महान पर्वत है ये आपको परमेश्वर की परम सत्ता का अहसाह कराता है और हमें निरंतर विनम्र होना सिखाता है |
एक चीज जो यात्रा आसान बनाती है वो है भगवान पर अटूट विश्वास मैंने ऐसे बहुत से लोगों को केवल इसी विश्वास के बल पर यात्रा पूरी करते देखा जबकि वो ज्यादा फिट नहीं थे, जब आप भोले का नाम लेकर आगे बढ़ते हैं तो भोलेनाथ आपकी यात्रा संपूर्ण कराते हैं, फिर चिंता की क्या बात | मैं यहाँ अकेला ही आया था, बहुत ज्यादा नहीं पता था पर प्रभु की कृपा से पहले रामपुर का वो दोस्त मिला, फिर विकास और सुनील, मैडी का टेंट, सर्दी में कम्बल और फिर ठाकुर साहब, इन सब से मेरी यात्रा बहुत आसान हो गयी और ये किसी चमत्कार से कम नहीं था, इसलिए हमेशा भगवान पर विश्वास रखना चाहिए बाकि चीजें अपने आप आसान हो जाती हैं | अगले दिन जाओं से वापस रामपुर – शिमला - चंडीगढ़ होते हुए दूसरे दिन मैं लखनऊ पहुँच गया |
इस लम्बे, बोरिंग और थकाऊ ब्लॉग को पढ़ने के लिए बहुत – बहुत धन्यवाद् |
|| ॐ नमः शिवाय ||
|| हर हर महादेव ||