त्र्यम्बकेश्वर और भीमाशंकर
त्रियम्बकेश्वर, ब्रह्मगिरी, अंजनेरी और भीमाशंकर
इस वर्ष जून की शुरुआत में मुझे त्रियम्बकेश्वर जाने का अवसर प्राप्त हुआ, वैसे पिछले कई वर्षों से मैं यहाँ आने की सोच रहा था और इस बार जब किसी कारणवश मुंबई जाना हुआ तो यात्रा ब्रेक कर पहले नासिक तक का आरक्षण करवाया |
त्रियम्बकेश्वर भगवान भोलेशंकर के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है और नासिक शहर से लगभग 30 किमी की दूरी पर है | मेरी ट्रेन लेट हो गयी और शाम 4 बजे नासिक पहुँची और मैंने यहाँ से सीधे पंचवटी के लिये ऑटो ले लिया, यहाँ पहुँचकर सिंहानिया धर्मशाला में एक कमरा किराये पर लिया और नहाकर घूमने निकल पड़ा | गोदावरी के घाट पर बहुत सारे विराट वट के पेड़ हैं और शायद इसीलिए इसका नाम पंचवटी पड़ा, वनवास काल में भगवान श्री राम ने माँ सीता और लक्ष्मण जी के साथ यहाँ निवास किया था | यहाँ वैसे तो बहुत सारे मंदिर हैं जिनमे से प्रमुख हैं, कालाराम मंदिर, सीता गुफा, लक्ष्मण मंदिर, सुन्दरनारायण मंदिर और कपलेश्वर महादेव मंदिर और यहाँ से तपोवन भी कुछ ही दूरी पर है पर समय के अभाव में मैं वहाँ नहीं जा पाया | इस समय आम और जामुन का मौसम था और पंचवटी के घाटों पर आराम से बैठकर अल्फ़ान्सो का लुत्फ़ लिया, यहाँ के जामुन भी बहुत बड़े और स्वादिष्ट थे और साथ ही साथ बहुत ही बढियां अमरुद भी इस मौसम में आ रहे थे तो इन सब को पैक कराकर और खाना खाकर मैं वापस धर्मशाला आ गया, सुबह जल्दी उठाना था इसलिए नौं बजे तक सो गया |
अगली सुबह तीन बजे उठा, नहाकर साढ़े चार बजे तक बस स्टैंड पहुँच गया जो पंचवटी से पाँच किमी की दूरी पर है, मैं थोड़ा लकी भी रहा कि निकलते ही मुझे सीधी बस स्टैंड के लिए मिल गयी क्योंकि इतनी सुबह वहाँ ऑटो भी नहीं चल रहे थे | बस स्टैंड पर त्रिअम्बक जाने के लिए बहुत सवारियां थीं और कुछ ऑटो भी जा रहे थे पर अभी कोई बस नहीं थी | लगभग 15 मिनट बाद बस मिली और उसने साढ़े पाँच तक त्रिअम्बक पहुंचा दिया | मंदिर बस स्टैंड से बस लगा हुआ ही है और अभी यहाँ ज्यादा बड़ी लाइन नहीं थी | बाहर ही बहुत सी प्रसाद और पूजन सामग्री की दुकानें सजी हुई थीं और यहीं पता चला कि गर्भगृह में दर्शनों का समय बस एक घंटे ही है और वो भी है प्रातः छः से सात बजे का और वो भी एक विशेष प्रकार के वस्त्र जिसे पीताम्बरी कहते हैं उसके साथ | और इस एक घंटे में भी गर्भ गृह में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है, सुनकर थोड़ा विचित्र लगा पर और कोई उपाय भी नहीं था तो एक पीताम्बरी ले ली |
ये एक विशेष प्रकार की लम्बी पीले रंग की धोती होती है जिसे दुकान वाले ही पहनाते हैं और बस इसी को ही पहन के जाने की अनुमति है आप को अपने अन्य सारे वस्त्र उतारने पड़ते हैं | दुकान वालों को इसे पहनाने में महारत है और वो इसे इस प्रकार से बांध देते हैं कि विश्वास हो जाता है कि ये खुलेगी नहीं | पीताम्बरी पहन कर और हाथों में जल भरा कलश जो मैं घर से ही लाया था लेकर मैं दर्शनों के लिए लाइन में लग गया | अभी लगभग सौ आदमी लगे हैं और छः बज रहे थे पर लाइन धीरे धीरे बढ़ रही थी | यहाँ वहाँ नजर आते पंडा लोगों को शीघ्र दर्शन का लालच देकर अपनी ओर खींच रहे थे, इनके पास पीताम्बरी से लेकर सारी व्यवस्था है और इनके लिए कोई नियम लागू नहीं होते हैं ये जब चाहें जैसे चाहें मंदिर गर्भगृह में प्रवेश कर सकते हैं |
लाइन धीरे ही सही पर आगे बढ़ रही थी और पौने सात तक मैं मंदिर के मुख्य भवन तक पहुँच गया जहाँ से गर्भगृह साफ़ नजर आ रहा था | दूर - दूर से आये बहुत से लोगों को इस पीताम्बरी के नियम के बारे में मालूम न होने से वे अन्दर नहीं जा पा रहे थे और गर्भगृह के द्वार से ही दर्शन कर पाने को विवश थे | शिवलिंग थोड़ा नीचे की ओर होने के कारण द्वार के सामने एक शीशा लगा है जहाँ से आप दर्शन कर सकते हैं पर इससे भी कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं होता है क्योंकि शिवलिंग के चारों ओर भक्तों का ताँता लगा रहता है और इसके कारण दर्शन नहीं हो पाते हैं | ये सब देखकर मुझे अच्छा नहीं लगा, भोले नाथ जो अवढरदानी हैं जो लोगों पर अति शीघ्र प्रसन्न होते हैं और हर प्रकार की इच्छा की पूर्ति करते हैं उनके दर्शनों पर इस प्रकार की पाबंदी और नियम ?
प्रभु की कृपा से सात बजे से थोड़ा पहले मैं गर्भगृह के द्वार पर पहुँच गया, शीश नवाया और अन्दर प्रवेश किया | यहाँ पर शिवलिंग थोड़ा नीचे की ओर है और वास्तव में तीन छोटे शिवलिंग हैं जिन्हें ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक माना जाता है और शायद इसीलिए इस का नाम त्रिअम्बकेश्वर पड़ा | गर्भगृह में बहुत लोग नहीं थे पर आप शांति से जल न चढ़ा पायें इसकी पूरी व्यवस्था पंडा सँभालते हैं, ये यूँ ही फालतू में चिल्लाते रहते हैं और इन्हें फर्क नहीं पड़ता कि ये किस पर चिल्ला रहे हैं और कहाँ बैठे हैं, अन्यथा ज्योतिर्लिंग में कोई सज्जन व्यक्ति तो चिल्लाने का साहस नहीं कर सकता है | खैर इनकी चिल्लाहट से बेपरवाह मैंने भगवान् भोलेनाथ को जल अर्पित किया और श्रद्धा से नमन किया और दर्शनों के लिए कोटि – कोटि धन्यवाद् दिया | गर्भगृह से बाहर आकर थोड़ी देर ध्यान की अवस्था में बैठा और फिर परिक्रमा कर बाहर आ गया | दुकान जाकर अपने कपड़े पहने और फिर धूप में आराम से चाय का मजा लिया |
समुद्र तल से लगभग 600 मीटर की ऊँचाई पर होने के कारण नासिक में मौसम सुहावना बना रहता है और त्रिअम्बक तो और भी ऊँचाई पर स्थित है और इसके ठीक पीछे है पवित्र ब्रह्मगिरी पर्वत जो पवित्र गोदावरी का उद्गम स्थल है | समुद्रतल से लगभग 1200 मीटर की ऊँचाई पर स्थित ये पर्वत भगवान शिव का ही विराट स्वरुप माना जाता है और अक्सर बादलों से घिरा रहता है, मंदिर से इसकी दूरी लगभग 2 किमी है | चाय नाश्ता कर और रास्ते में बिक रहे जामुनों का आनंद लेता हुआ मैं आधे घंटे में इसके बेस तक पहुँच गया पर इसके पहले रस्ते में कुशावर्त तीर्थ मिला जहाँ पहले स्नान करके फिर लोग मंदिर में दर्शन करते हैं और ये कुम्भ मेले में स्नान का प्रमुख कुंड है |
कुशावर्त कुण्ड और पीछे दिखता ब्रह्मगिरी पर्वत
थोड़ी देर में मैं ब्रह्मगिरी के बेस तक पहुँच गया और और चढ़ाई प्रारंभ की | पहले आधे किमी का रास्ता आसान है और ज्यादा चढ़ाई नहीं है, मौसम अच्छा है और जगह –जगह निम्बू पानी की छोटी –छोटी दुकाने हैं | थोड़ी देर बाद रास्ता दो भागों में विभाजित हो जाता है, जगह का नाम है गंगद्वार | यहाँ से अगर आप दाहिने जायेंगे तो महर्षि गौतम गुफा, गोरखनाथ गुफा और राम – लक्ष्मण कुंड पड़ेंगे और अगर आप सीधी चढ़ाई चढ़ते जायेंगे तो पर्वत के ऊपर पहुँच जायेंगे |
ब्रह्मगिरी की ओर जाता रास्ता हरियाली से भरपूर है
आगे खड़ी सीढियाँ हैं जो थोड़ी फिसलन भरी भी थीं और जगह जगह बैठे उत्पाती बंदरों के कारण चढ़ना और मुश्किल हो गया था | रास्ते में आपको लोग आते जाते दिख जायेंगे जिनमे से अधिकतर स्कूल – कॉलेज जाने वाले युवा हैं वहीँ कुछ तीर्थ यात्री भी हैं | लगभग एक किमी की सीधी चढ़ाई के बाद आप एक सपाट स्थान पर पहुँचते हैं और इसकी सुन्दरता आपको मंत्र मुग्ध कर देती है | चारों ओर हरी – भरी घास, तरह –तरह के फूल और दूर तक दिखता नज़ारा उसपर हल्की फुहारें और ठंडी हवा, मन जैसे यहीं ठहर गया हो | कुछ देर यहीं यूँही प्रकृति के अनुपम सौंदर्य का पान किया और फिर चलना आरंभ किया | आगे की चढ़ाई में सीढियाँ नहीं हैं बस घास के मैदानों से होते हुए हल्की चढ़ाई है और 15-20 मिनट बाद आप इसके ऊपर पहुँच जाते हैं |
अभी आधा ऊपर ही आये थे सामने वाले पर्वत को चढ़ना बाकी था
यहाँ भी एक सपाट मैदान मिला और भीषण आंधी जैसी ठण्डी हवाओं ने स्वागत किया, ये इतनी तेज़ थीं कि खड़ा भी होना मुश्किल था और लगभग सभी लोग किसी न किसी सहारे को थामे हुए थे | यहाँ का नज़ारा अनोखा था दूर तक फैली वादियाँ, गोदावरी नदी, अंजनी पर्वत और मीलों दूर तक के नज़ारे, आप चारों और का दृश्य देख सकते हैं | इसी पहाड़ी के एक ओर है गोदावरी का उद्गम और मंदिर वहीँ दूसरे छोर पर दाहिनी ओर है प्राचीन शिव मंदिर | कुछ देर यहीं पर हवा के कम होने की प्रतीक्षा की पर इस पर्वत शिखर के चारों ओर फैली घाटियों को देखकर मै समझ गया कि ये यहाँ ऐसे ही चलती होंगी शायद मानसून ने इनकी तीव्रता को और भी बढ़ा दिया है | लगभग 1200 मीटर की ऊंचाई पर हवाएँ न केवल तीव्र हैं अपितु ठण्डी भी हैं और ज्यादा देर यहाँ बैठना संभव न था, पास ही पड़ी एक मजबूत लोहे की रॉड उठाकर उसके सहारे गोदावरी मंदिर की ओर बढ़ चला |
प्राचीन शिव मंदिर, ब्रह्मगिरी टॉप
पर्वत के ऊपर आकर भी एक पर्वत शेष रह जाता है जो आप नहीं चढ़ सकते हैं
गोदावरी इस पहाड़ी पर यहाँ से निकलकर कई स्थानों पर प्रकट होती है और पुनः इसी पहाड़ी के अन्दर चली जाती है, इसकी बहुत सी धाराएं हैं और इनके अलग अलग नाम हैं | मंदिर में ये एक गाय के मुख से निकलती है इसलिए इसे गंगा भी कहा जाता है | यहाँ दर्शन के बाद पहाड़ी के दूसरी छोर स्थित भगवान महादेव मंदिर को प्रस्थान किया जो यहाँ से 250 मीटर की दूरी पर है | अभी बादल घने हो गए थे, फुहारें पड़ने लगी थीं और हवा और ठण्डी हो गयी थी, बन्दर अलग परेशान कर रहे थे और अभी इस रस्ते मै अकेला ही था, किसी तरह इन सब से बचते – बचाते भगवान् के मंदिर पहुँचा | ये एक प्राचीन मंदिर है जो शिवलिंग देखने से ही समझ आ जाता है, भगवान आशुतोष को जल अर्पित कर कुछ देर शांति से प्रार्थना की और फिर यहीं थोड़ा विश्राम किया | फुहारें थमती न देख थोड़ी देर बाद यहाँ से प्रस्थान किया और लगभग 45 मिनट में वापस गंगद्वार आ गया | यहाँ निम्बू पानी पिया और गंगद्वार दर्शनों के लिए बढ़ चला | लगभग आधे किमी बाद फिर चढ़ाई आरंभ हुई और गंगद्वार पर पहुँच कर ख़त्म हुई, रास्ते में मजेदार पकौड़ी और चाय का आनंद लिया |
गोदावरी पहाड़ी के शिखर पर स्थित अपने उद्गम स्थल से प्रकट होकर पुनः यहाँ दर्शन देती है और फिर पर्वत के अन्दर चली जाती है, पास ही कोलम्बिका देवी और दुर्गा माँ का भी मंदिर है | यहाँ से और आगे दाहिने ओर महर्षि गौतम की गुफा है जिसमे 108 छोटे शिवलिंग हैं और इससे थोड़ी दूर पर ही स्थित है गुरु गोरखनाथ गुफा |
यहाँ से उतरने पर राम कुंड और लक्ष्मण कुंड पड़ते हैं पर सफाई के अभाव में अव्यवस्था के शिकार हैं खासकर यहाँ के दुकानदार ही इन पौराणिक कुंडों में गंदगी फैलाते हैं | इन कुण्डों की सफाई और देखरेख की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए | रास्ते में जगह जगह बजरंगबली के भी मंदिर हैं | थोड़ी देर बाद मैं नीचे आ गया, आना – जाना मिलाकर लगभग आठ - नौ किमी का सफ़र तय किया, घड़ी में समय देखा तो 12 बज रहे थे, मुझे अभी एक और ऐसी ही यात्रा की शुरुआत करनी थी इसलिए जल्दी से खाना खाया और वापिस नासिक जाने वाली बस में बैठ गया |
कोलंबिका माता मंदिर, ब्रह्मगिरी
अंगूठे जैसा दिखता पर्वत; हाईवे के पास
माता अंजनी हनुमान मंदिर सामने वाले पर्वत के ऊपर था
त्रिअम्बक से 5 किमी की दूरी पर है अंजनेरी जिसकी पहचान है अँगूठे जैसा पर्वत जो ब्रह्मागिरी से भी नज़र आता है, मैंने बस वाले को पहले ही बोल दिया था और 10 मिनट बाद उसने वहाँ उतार दिया | पहले मैं आपको बता दूं कि मैं यहाँ क्यों जा रहा हूँ | इस पर्वत के बारे में मान्यता है कि यहाँ अंजनी माता ने घोर तपस्या की थी और कुछ लोग इस स्थान को हनुमान जी के जन्म से भी जोड़कर देखते हैं तो इसी जिज्ञासा में मैंने यहाँ आने का निर्णय किया | हाईवे से दाहिने हाथ पर कट है और एक कच्ची रोड जाती हुई दिखती है, मैंने भी धीरे – धीरे चलना आरम्भ किया, धीरे धीरे रोड पर्वत की ओर बढ़ने लगी और एक बजे की धूप में चढ़ाई थोड़ी कठिन लगने लगी | कुछ लोग अपने अपने साधन से जा रहे थे पर कोई ऑटो या टैक्सी नहीं दिख रही थी और तो और रास्ता बताने वाला भी कोई नहीं दिख रहा था | लगभग दो किमी की चढ़ाई के बाद एक मंदिर दिखा, मंदिर नया बना ही दिख रहा था पर परिसर बड़ा था, ऊँचाई पर होने के कारण यहाँ का वातावरण बड़ा शांत और सुन्दर था जिससे बड़ी प्रसन्नता हुई | मंदिर में माता अंजनी और हनुमान जी की प्रतिमा है, दर्शन उपरांत कुछ देर विश्राम किया | पुजारी जी ने बताया अभी दो – तीन किमी और रास्ता है इसके बाद अंजनी पर्वत के लिए सीढियाँ मिलेंगी |
जाना तो था ही इसलिए ज्यादा कुछ सोचे बिना चलना शुरू किया और आधे घंटे बाद एक जगह नजर आयी जहाँ बहुत से वाहन खड़े थे और कुछ चाय पकौड़ी और निम्बू पानी की दुकाने थीं | पूछने पर पता चला कि ये ही पर्वत का बेस है वैसे ये जगह भी बहुत ऊंचाई पर है और अँगूठे की आकृति वाला पर्वत यहाँ से काफी नीचे छूट गया था | निम्बू पानी पिया और थोड़ी देर आराम किया, पानी वाले ने बताया कि लगभग पाँच किमी चलना है और ये सुनते ही मैं थोड़ा घबरा गया क्योंकि ढाई बज रहे थे, बारिश का मौसम था और रस्ते का कुछ पता नहीं था और मेरी चिंता दूरी न होकर समय था कि शाम से पहले वापस आ पाऊँगा या नहीं | “ चिंता मत करो आप दो - ढाई घंटे में वापस आ जाओगे, निश्चिंत जाओ |” ये बात सुनकर थोड़ा बल मिला और चढ़ाई आरंभ की |
एकदम खड़ी सीढियाँ हैं काफी ऊँची - ऊँची और चार पांच कदम में ही साँस फूल जा रही थी | सीढियों के इर्द गिर्द ही हनुमान जी की छोटी –छोटी प्रतिमाएं हैं और कई गुफाएँ भी हैं जिससे इस जगह की प्राचीनता का पता चलता है | लगभग डेढ़ किमी की चढ़ाई के बाद मैं इस पर्वत के ऊपर पहुँच गया; बेहद खूबसूरत जगह, लगभग सपाट, हरे – भरे घास के मैदान, वृक्ष, दूर दूर तक फैलीं पर्वत मालाएं और ताज़ी ठण्डी हवा, मन एकदम हल्का हो गया था और कुछ देर मैं यूँ ही बैठा रहा | यहाँ से एक ओर ब्रह्मगिरी पर्वत और दूसरी ओर नासिक शहर दिख रहा था | इस जगह की सुन्दरता देखकर ऐसा लग रहा था कि प्राचीन काल में ये निश्चय ही तपोभूमि रही होगी |
यहाँ से दूर कोई एक किमी पर एक छोटा सा मंदिर दिख रहा था जिसे देखकर मन को प्रसन्नता मिली कि हो न हो यही माता का मंदिर है और उस ओर चलना आरंभ किया | रास्ता पथरीला और उबड़ खाबड़ है और कोई 20 मिनट में मैं वहाँ पहुँच गया | ये वास्तव में एक छोटी मठिया है और इससे लगी हुई एक सुन्दर झील भी पास में है जिसके किनारों पर बकरियाँ चर रही थीं | मंदिर अंजनी माता का ही है और इसमें बाकी देवताओं की भी प्रतिमा हैं, मंदिर में पूजा कर पुजारी जी से आशीर्वाद लिया तब उन्होंने बताया कि मंजिल अभी दूर है और सामने एक पर्वत की और इशारा किया जिसमे बादलों ने डेरा जमाया हुआ था | “ मंदिर इस पर्वत के ऊपर है, जाने के लिए सीढियाँ हैं आराम से जाना |”
इतनी ऊंचाई पर आने के बाद मैंने ये आशा नहीं की थी कि एक और पर्वत चढ़ना पड़ेगा मैं अभी लगभग ब्रह्मगिरी पर्वत जितनी ऊँचाई पर था और सामने वाला पर्वत आसानी से 100 मीटर ऊँचा लग रहा था, यहाँ तक मैं तेज आया था इसलिए अब कुछ यात्री मिल गए थे | थोड़ी देर बाद सीढियाँ चालू हुईं एकदम सीधी और ऊँची पर साइड में रेलिंग लगी थी इसलिए सुरक्षित महसूस हो रहा था | धीमे - धीमे चढ़ते हुए पर्वत शिखर पर पहुंचे और पहुँच कर थोड़ा आश्चर्य हुआ मुझे लगा था कि इसके ऊपर ज्यादा जगह नहीं होगी और कहीं किनारे पर मंदिर होगा पर ये तो सपाट निकला और पता चला कि अभी और चलना है | पर चलें कहाँ कोहरे के कारण कुछ दिखाई नहीं दे रहा था और नीचे जहाँ मौसम अच्छा था वहीँ बेहद काले बादलों ने यहाँ डेरा जमाया हुआ था मानो हमारे आने का इंतज़ार कर रहे हों |
पगडंडियों के सहारे हमने बढ़ना चालू किया ही था कि ये बरस पड़े, एकदम से और इतनी जोर से बरसे कि सँभलने का कोई अवसर ही नहीं मिला और मोबाइल पर्स सब भीग गया | मेरे पास एक बैक पैक था जिसमे पॉलिथीन में भरके जल्दी से अन्दर किया और पुनः चलने का प्रयास किया पर जाएँ तो किधर कुछ नजर नहीं आ रहा था, एक तो वैसे ही ठण्डा मौसम ऊपर से बारिश, कपकपी छूट रही थी |
खैर किसी तरह चलना जारी रखा और कुछ देर बाद एक छोटा सा परिसर नजर आया जिसके नीचे लोग जमा थे | पास जाकर देखने पर मालूम पड़ा कि यही अंजनी – हनुमान मंदिर है जो एक मठिया जितना बड़ा था और चबूतरे पर लोग बारिश बंद होने की राह देख रहे थे | मंदिर के दर्शन मात्र से सारी थकान मिट गयी और मन आनंद से सराबोर हो गया, बारिश के कारण तन भी धुल गया जो एक तरह से अच्छा ही हुआ | प्रसाद के रूप में थोड़े माला फूल लिए और अन्दर प्रवेश किया | मंदिर में हनुमान जी बाल स्वरुप में हैं और अंजनी माता की गोद में बैठे हैं, प्रतिमाएं गेरुए रंग में रंगी हैं और गणेश जी की भी प्रतिमा है | पूजा – अर्चना कर कुछ क्षण शांति से अन्दर व्यतीत किये और फिर माथा टेककर बाहर आ गया | बारिश अब बंद हो गयी थी पर धुंध मौजूद थी इस ऊंचाई पर यहाँ बस यही एक मंदिर है और चारों ओर बिल्कुल शांति है अगर मौसम अच्छा हो तो ये ध्यान के लिए अति उत्तम जगह है |
अंजनी माता और बाल हनुमान मंदिर
ऐसी जगहों पर प्रायः लोग नहीं आते है पहला जानकारी का अभाव और दूसरा थोड़ी चढ़ाई पर भगवान् का नाम जपते हुए रास्ता कब तय हो जाता है इसका पता नहीं चलता | मंदिर के बाहर तीन चार स्थानीय लड़कों से मित्रता हुई और हम बात –चीत करते हुए इस पर्वत से नीचे उतर आये | नीचे जब झील के पास आये तो देखा धूप खिली हुई है और मौसम एकदम साफ़ है इससे जल्दी ही हमारे कपड़े सूख गए और आधे घंटे के बाद हम वापस पहाड़ी के बेस पर पहुँच गए | घड़ी में समय देखा तो साढ़े पाँच बज रहे थे मतलब तीन घंटे लगे | यहाँ पर हमने चाय पकौड़ी का आनंद लिया, लड़के बाइक पर थे और नासिक जा रहे थे और मुझसे भी साथ चलने को कहा | मैंने भी हाईवे तक साथ चलने की हामी भर दी जिससे 5 किमी की बचत हुई | हाईवे पर इन्हें विदा किया और बस पकड़कर वापस सात बजे तक होटल पहुँच गया | जल्दी से कपडे बदले, खाना खाया और बैग लगायी और लेट गया | पीठ एकदम जकड़ गयी थी और कमर दर्द करने लगी थी, आज बहुत समय बाद मैं इतना चला बल्कि चढ़ा | सब मिलाकर 23-24 किमी चला था उसमे से भी ज्यादातर चढ़ाई थी पर भगवान की कृपा से शक्ति मिलती रही और जब दिन की शुरुआत में ही बाबा भोले के दर्शन हो जाएँ तो फिर कोई कष्ट हो भी नहीं सकता | ब्रह्मगिरी और अंजनेरी ऐसे स्थान हैं जहाँ आकर इस जगह को और करीब से जानने का अवसर मिलता है और आपको वास्तव में अच्छा लगता है वरना तो आजकल हम लोगों का ज्यादातर समय बस रास्ता काटने में ही निकल जाता है | ऐसे स्थानों पर आकर एक ठहराव मिलता है और यात्रा का उद्देश्य पूरा होता है अतः मेरा सबसे यही अनुरोध है कि यदि संभव हो तो थोड़ा अतिरिक्त समय ऐसे स्थानों के लिए भी अवश्य निकालें |
भीमाशंकर
अगली सुबह मैं चार बजे उठा और नासिक सी बी एस बस स्टैंड पहुँच गया जहाँ से पुणे जाने वाली बस में सवार हो गया, आज का मेरा कार्यक्रम भीमाशंकर जाने का था | नासिक - पुणे हाईवे पर नासिक से 148 किमी की दूरी पर मंचर है जहाँ से भीमाशंकर का रास्ता कटता है | मंचर से इसकी दूरी 50 किमी है वहीँ पुणे से मंचर की दूरी 60 किमी है | भीमाशंकर भगवान् शंकर के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है और महाराष्ट्र में स्थित सहयाद्री पर्वतमालाओं में 1050 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है | मंचर मैं 10 बजे पहुँच गया और यहाँ से भीमाशंकर जाने वाली बस में बैठ गया और थोड़ी देर बाद बस घुमावदार पहाड़ी रास्तों पर दौड़ने लगी | रास्ता बहुत सुन्दर है, आस – पास सदाबहार वन हैं और बीच में घास के मैदान और साथ ही बहती है घोड़ नदी | धीरे धीरे ऊँचाई बढ़ने लगती है और हवा ठण्डी होने लगती है थोड़ी देर बाद बस पहाड़ी के टॉप पर पहुँच जाती है और आगे का रास्ता सपाट है |
भीमाशंकर रस्ते का एक सुन्दर दृश्य
ऊपर मौसम एकदम साफ़ था, रस्ते के दोनों ओर धान के खेत थे और चारों ओर जबर्दस्त हरियाली कुछ देर ऐसे ही बस चलती रही और फिर थोड़ी देर बाद ये घने वनों में प्रवेश कर गयी | यहाँ से भीमाशंकर वाइल्डलाइफ सेंचुरी प्रारंभ होती है, वन इतने घने हैं कि थोड़ी देर बाद दिखना ही बंद हो जाता है और ड्राईवर को लाइट जलानी पड़ती है | इतने में कहीं से काले बादल आ गए और चारों और कोहरा छा जाता है, एकदम से रात जान पड़ने लगी और फिर थोड़ी देर में बस स्टैंड आ गया |
बूंदाबांदी के बीच एक दुकान पर बैग रखा, प्रसाद लिया और एक लोटे में जल भरकर दर्शनों की लाइन में लग गया | मंदिर थोड़ा नीचाई पर है और एक सीढ़ीनुमा चौड़ा रास्ता मंदिर की ओर ले जाता है | रास्ता पूरी तरह से ढका हुआ है इसलिए बारिश में भी कोई असुविधा नहीं होती है | भीमाशंकर मैं लगभग 12 बजे पहुंचा था और आज रविवार होने के कारण काफी लोग आ गए थे और लाइन काफी धीमे बढ़ रही थी | इन्हीं सीढियों के दोनों ओर प्रसाद की भी दुकाने हैं जहाँ बहुत अच्छा खोया मिलता है | इसी बीच भीषण बारिश आ गयी जिससे मंदिर परिसर में अन्दर तक कोहरा भर गया और मौसम बहुत ठण्डा हो गया | खैर धीमे – धीमे ही सही लाइन आगे सरकने लगी और लगभग आधे घंटे बाद मैं मुख्य भवन तक आ गया, लाइव दर्शन जगह – जगह पर लगी टीवी के माध्यम से हो रहे थे | अभी शिवलिंग को कवच पहनाया हुआ था और भक्तगण प्रसाद – जल आदि अर्पित कर रहे थे थोड़ी दूर और आगे बढ़ने पर मैं लगभग गर्भ गृह के बिल्कुल सामने आ गया |
जब बस 15 -20 लोग ही आगे बचे तभी लाइन रुक गयी, पता चला कि आरती होने वाली है और थोड़ी देर में आरती शुरू हो गई | बारिश अभी और भी तेज़ हो गयी थी और अब इसको एक घंटे से ज्यादा हो गया था और जब आरती और घंटे- घड़ियाल की मधुर ध्वनि इसमें मिल गयी तो एक अलग ही वातावरण का निर्माण हुआ | थोड़ी देर बाद लाइन फिर बढ़नी शुरू हुई और मैंने अन्दर प्रवेश किया, भगवान की कृपा से शिवलिंग के मूल स्वरुप के दर्शन हुए क्योंकि आरती के बाद कवच हटा लिया गया था | यहाँ आप आराम से 15 से 20 सेकंड बिता सकते हैं और ये समय भोलेनाथ को जल, पुष्प आदि अर्पित करने के लिए पर्याप्त है अच्छी बात ये है की आपको कोई बाहर नहीं खींचता | भगवान् को जल एवं पुष्प अर्पित कर माथा टेका और बाहर आ गया, थोड़ी देर शांति से ध्यान किया और फिर परिसर में बने दूसरे मंदिरों का दर्शन किया जिनमे से प्रमुख हैं श्री राम – जानकी, लक्ष्मण मंदिर और हनुमान मंदिर | माँ दुर्गा का भी यहाँ सुन्दर मंदिर है |
भीषण बारिश अभी भी जारी थी और अच्छी बात ये थी कि मेरे पास रेन कोट था, वापस सीढियाँ चढ़ के देखा तो लाइन बहुत लम्बी हो गयी थी और लगभग रोड तक पहुँच गयी थी, वापस आकर खाना खाया और बारिश बंद होने का इंतजार करने लगा | असल में मेरी इच्छा आज यहाँ रूककर भीमाशंकर सेंचुरी और हनुमान लेक जाने की थी और सोचा था अगर समय मिला तो गुप्त भीमाशंकर भी जाऊँगा पर अब ख़राब मौसम के कारण वहाँ जाना संभव नहीं लग रहा था | हनुमान लेक पास ही लगभग आधे किमी की दूरी पर थी पर लगातार होती बारिश ने वहां भी नहीं जाने दिया | यहाँ पर कोई होटल भी नहीं था, मैं समझ गया की शायद मुझे एक बार और आना पड़ेगा और वापस बस स्टैंड चल दिया | बस अड्डे पर कोई बस नहीं थी पूछने पर पता चला कि बहुत ज्यादा वाहन हो जाने के कारण केवल छोटी गाड़ियों को ही प्रवेश की अनुमति है और बस को दो किमी पहले ही रोक दिया गया है |
मेरे पास ठीक –ठाक वजनी बैग था और आगे हल्की चढ़ाई थी पर किया भी तो क्या जाए ? जब बारिश थोड़ी हल्की हुई तो टैक्सी और कारों के बीच किसी तरह जगह बनाते चलना आरंभ किया और आधे घंटे की यात्रा के बाद एक मोड़ पर पहुँचा जहाँ एक बस सवारी उतार रही थी | दिल को बड़ी तसल्ली मिली और जय भोले बोलकर मैं बस में सवार हो गया, बस पुणे की थी तो मैंने कहा पुणे ही सही | बस शाम सात बजे बस शिवाजी नगर बस अड्डे पहुँच गयी जहाँ मैंने होटल लिया और अगली सुबह मुंबई के लिए प्रस्थान किया |
| | ॐ नमः शिवाय | |
कैसे जाएँ ...
भीमाशंकर पुणे से 110 किमी और नासिक से 200 किमी की दूरी पर है अगर आप मुंबई से सार्वजानिक परिवहन से आएंगे तो भी आपको पुणे आना पड़ेगा | यहाँ कोई होटल नहीं है बस कुछ मकान और दुकाने हैं, निकटतम होटल और रिसोर्ट 30 -35 किमी की दूरी पर हैं | तापमान दिन के समय किसी भी मौसम में 20 से 30 डिग्री के बीच रहता है |
त्रिअम्बकेश्वर
ये नासिक से 30 किमी की दूरी पर है, अंजनेरी पर्वत नासिक – त्रिअम्बकेश्वर हाईवे पर त्रिअम्बकेश्वर से पाँच किमी पहले है और मंदिर तक 8-9 किमी का ट्रेक है | अगर आप अपने वाहन से आते हैं तो इसके बेस तक आ सकते हैं जहाँ से 4 किमी का ट्रेक है | ब्रह्मगिरी त्रिअम्बकेश्वर मंदिर से 1.5 किमी की दूरी पर है जहाँ से 3-4 किमी का ट्रेक है | त्रिअम्बकेश्वर में रुकने के लिए होटल उपलब्ध हैं |