
त्र्यम्बकेश्वर और भीमाशंकर
त्रियम्बकेश्वर, ब्रह्मगिरी, अंजनेरी और भीमाशंकर
इस वर्ष जून की शुरुआत में मुझे त्रियम्बकेश्वर जाने का अवसर प्राप्त हुआ, वैसे पिछले कई वर्षों से मैं यहाँ आने की सोच रहा था और इस बार जब किसी कारणवश मुंबई जाना हुआ तो यात्रा ब्रेक कर पहले नासिक तक का आरक्षण करवाया |
त्रियम्बकेश्वर भगवान भोलेशंकर के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है और नासिक शहर से लगभग 30 किमी की दूरी पर है | मेरी ट्रेन लेट हो गयी और शाम 4 बजे नासिक पहुँची और मैंने यहाँ से सीधे पंचवटी के लिये ऑटो ले लिया, यहाँ पहुँचकर सिंहानिया धर्मशाला में एक कमरा किराये पर लिया और नहाकर घूमने निकल पड़ा | गोदावरी के घाट पर बहुत सारे विराट वट के पेड़ हैं और शायद इसीलिए इसका नाम पंचवटी पड़ा, वनवास काल में भगवान श्री राम ने माँ सीता और लक्ष्मण जी के साथ यहाँ निवास किया था | यहाँ वैसे तो बहुत सारे मंदिर हैं जिनमे से प्रमुख हैं, कालाराम मंदिर, सीता गुफा, लक्ष्मण मंदिर, सुन्दरनारायण मंदिर और कपलेश्वर महादेव मंदिर और यहाँ से तपोवन भी कुछ ही दूरी पर है पर समय के अभाव में मैं वहाँ नहीं जा पाया | इस समय आम और जामुन का मौसम था और पंचवटी के घाटों पर आराम से बैठकर अल्फ़ान्सो का लुत्फ़ लिया, यहाँ के जामुन भी बहुत बड़े और स्वादिष्ट थे और साथ ही साथ बहुत ही बढियां अमरुद भी इस मौसम में आ रहे थे तो इन सब को पैक कराकर और खाना खाकर मैं वापस धर्मशाला आ गया, सुबह जल्दी उठाना था इसलिए नौं बजे तक सो गया |
अगली सुबह तीन बजे उठा, नहाकर साढ़े चार बजे तक बस स्टैंड पहुँच गया जो पंचवटी से पाँच किमी की दूरी पर है, मैं थोड़ा लकी भी रहा कि निकलते ही मुझे सीधी बस स्टैंड के लिए मिल गयी क्योंकि इतनी सुबह वहाँ ऑटो भी नहीं चल रहे थे | बस स्टैंड पर त्रिअम्बक जाने के लिए बहुत सवारियां थीं और कुछ ऑटो भी जा रहे थे पर अभी कोई बस नहीं थी | लगभग 15 मिनट बाद बस मिली और उसने साढ़े पाँच तक त्रिअम्बक पहुंचा दिया | मंदिर बस स्टैंड से बस लगा हुआ ही है और अभी यहाँ ज्यादा बड़ी लाइन नहीं थी | बाहर ही बहुत सी प्रसाद और पूजन सामग्री की दुकानें सजी हुई थीं और यहीं पता चला कि गर्भगृह में दर्शनों का समय बस एक घंटे ही है और वो भी है प्रातः छः से सात बजे का और वो भी एक विशेष प्रकार के वस्त्र जिसे पीताम्बरी कहते हैं उसके साथ | और इस एक घंटे में भी गर्भ गृह में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है, सुनकर थोड़ा विचित्र लगा पर और कोई उपाय भी नहीं था तो एक पीताम्बरी ले ली |
ये एक विशेष प्रकार की लम्बी पीले रंग की धोती होती है जिसे दुकान वाले ही पहनाते हैं और बस इसी को ही पहन के जाने की अनुमति है आप को अपने अन्य सारे वस्त्र उतारने पड़ते हैं | दुकान वालों को इसे पहनाने में महारत है और वो इसे इस प्रकार से बांध देते हैं कि विश्वास हो जाता है कि ये खुलेगी नहीं | पीताम्बरी पहन कर और हाथों में जल भरा कलश जो मैं घर से ही लाया था लेकर मैं दर्शनों के लिए लाइन में लग गया | अभी लगभग सौ आदमी लगे हैं और छः बज रहे थे पर लाइन धीरे धीरे बढ़ रही थी | यहाँ वहाँ नजर आते पंडा लोगों को शीघ्र दर्शन का लालच देकर अपनी ओर खींच रहे थे, इनके पास पीताम्बरी से लेकर सारी व्यवस्था है और इनके लिए कोई नियम लागू नहीं होते हैं ये जब चाहें जैसे चाहें मंदिर गर्भगृह में प्रवेश कर सकते हैं |
लाइन धीरे ही सही पर आगे बढ़ रही थी और पौने सात तक मैं मंदिर के मुख्य भवन तक पहुँच गया जहाँ से गर्भगृह साफ़ नजर आ रहा था | दूर - दूर से आये बहुत से लोगों को इस पीताम्बरी के नियम के बारे में मालूम न होने से वे अन्दर नहीं जा पा रहे थे और गर्भगृह के द्वार से ही दर्शन कर पाने को विवश थे | शिवलिंग थोड़ा नीचे की ओर होने के कारण द्वार के सामने एक शीशा लगा है जहाँ से आप दर्शन कर सकते हैं पर इससे भी कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं होता है क्योंकि शिवलिंग के चारों ओर भक्तों का ताँता लगा रहता है और इसके कारण दर्शन नहीं हो पाते हैं | ये सब देखकर मुझे अच्छा नहीं लगा, भोले नाथ जो अवढरदानी हैं जो लोगों पर अति शीघ्र प्रसन्न होते हैं और हर प्रकार की इच्छा की पूर्ति करते हैं उनके दर्शनों पर इस प्रकार की पाबंदी और नियम ?
प्रभु की कृपा से सात बजे से थोड़ा पहले मैं गर्भगृह के द्वार पर पहुँच गया, शीश नवाया और अन्दर प्रवेश किया | यहाँ पर शिवलिंग थोड़ा नीचे की ओर है और वास्तव में तीन छोटे शिवलिंग हैं जिन्हें ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक माना जाता है और शायद इसीलिए इस का नाम त्रिअम्बकेश्वर पड़ा | गर्भगृह में बहुत लोग नहीं थे पर आप शांति से जल न चढ़ा पायें इसकी पूरी व्यवस्था पंडा सँभालते हैं, ये यूँ ही फालतू में चिल्लाते रहते हैं और इन्हें फर्क नहीं पड़ता कि ये किस पर चिल्ला रहे हैं और कहाँ बैठे हैं, अन्यथा ज्योतिर्लिंग में कोई सज्जन व्यक्ति तो चिल्लाने का साहस नहीं कर सकता है | खैर इनकी चिल्लाहट से बेपरवाह मैंने भगवान् भोलेनाथ को जल अर्पित किया और श्रद्धा से नमन किया और दर्शनों के लिए कोटि – कोटि धन्यवाद् दिया | गर्भगृह से बाहर आकर थोड़ी देर ध्यान की अवस्था में बैठा और फिर परिक्रमा कर बाहर आ गया | दुकान जाकर अपने कपड़े पहने और फिर धूप में आराम से चाय का मजा लिया |
समुद्र तल से लगभग 600 मीटर की ऊँचाई पर होने के कारण नासिक में मौसम सुहावना बना रहता है और त्रिअम्बक तो और भी ऊँचाई पर स्थित है और इसके ठीक पीछे है पवित्र ब्रह्मगिरी पर्वत जो पवित्र गोदावरी का उद्गम स्थल है | समुद्रतल से लगभग 1200 मीटर की ऊँचाई पर स्थित ये पर्वत भगवान शिव का ही विराट स्वरुप माना जाता है और अक्सर बादलों से घिरा रहता है, मंदिर से इसकी दूरी लगभग 2 किमी है | चाय नाश्ता कर और रास्ते में बिक रहे जामुनों का आनंद लेता हुआ मैं आधे घंटे में इसके बेस तक पहुँच गया पर इसके पहले रस्ते में कुशावर्त तीर्थ मिला जहाँ पहले स्नान करके फिर लोग मंदिर में दर्शन करते हैं और ये कुम्भ मेले में स्नान का प्रमुख कुंड है |

कुशावर्त कुण्ड और पीछे दिखता ब्रह्मगिरी पर्वत
थोड़ी देर में मैं ब्रह्मगिरी के बेस तक पहुँच गया और और चढ़ाई प्रारंभ की | पहले आधे किमी का रास्ता आसान है और ज्यादा चढ़ाई नहीं है, मौसम अच्छा है और जगह –जगह निम्बू पानी की छोटी –छोटी दुकाने हैं | थोड़ी देर बाद रास्ता दो भागों में विभाजित हो जाता है, जगह का नाम है गंगद्वार | यहाँ से अगर आप दाहिने जायेंगे तो महर्षि गौतम गुफा, गोरखनाथ गुफा और राम – लक्ष्मण कुंड पड़ेंगे और अगर आप सीधी चढ़ाई चढ़ते जायेंगे तो पर्वत के ऊपर पहुँच जायेंगे |

ब्रह्मगिरी की ओर जाता रास्ता हरियाली से भरपूर है
आगे खड़ी सीढियाँ हैं जो थोड़ी फिसलन भरी भी थीं और जगह जगह बैठे उत्पाती बंदरों के कारण चढ़ना और मुश्किल हो गया था | रास्ते में आपको लोग आते जाते दिख जायेंगे जिनमे से अधिकतर स्कूल – कॉलेज जाने वाले युवा हैं वहीँ कुछ तीर्थ यात्री भी हैं | लगभग एक किमी की सीधी चढ़ाई के बाद आप एक सपाट स्थान पर पहुँचते हैं और इसकी सुन्दरता आपको मंत्र मुग्ध कर देती है | चारों ओर हरी – भरी घास, तरह –तरह के फूल और दूर तक दिखता नज़ारा उसपर हल्की फुहारें और ठंडी हवा, मन जैसे यहीं ठहर गया हो | कुछ देर यहीं यूँही प्रकृति के अनुपम सौंदर्य का पान किया और फिर चलना आरंभ किया | आगे की चढ़ाई में सीढियाँ नहीं हैं बस घास के मैदानों से होते हुए हल्की चढ़ाई है और 15-20 मिनट बाद आप इसके ऊपर पहुँच जाते हैं |



अभी आधा ऊपर ही आये थे सामने वाले पर्वत को चढ़ना बाकी था
यहाँ भी एक सपाट मैदान मिला और भीषण आंधी जैसी ठण्डी हवाओं ने स्वागत किया, ये इतनी तेज़ थीं कि खड़ा भी होना मुश्किल था और लगभग सभी लोग किसी न किसी सहारे को थामे हुए थे | यहाँ का नज़ारा अनोखा था दूर तक फैली वादियाँ, गोदावरी नदी, अंजनी पर्वत और मीलों दूर तक के नज़ारे, आप चारों और का दृश्य देख सकते हैं | इसी पहाड़ी के एक ओर है गोदावरी का उद्गम और मंदिर वहीँ दूसरे छोर पर दाहिनी ओर है प्राचीन शिव मंदिर | कुछ देर यहीं पर हवा के कम होने की प्रतीक्षा की पर इस पर्वत शिखर के चारों ओर फैली घाटियों को देखकर मै समझ गया कि ये यहाँ ऐसे ही चलती होंगी शायद मानसून ने इनकी तीव्रता को और भी बढ़ा दिया है | लगभग 1200 मीटर की ऊंचाई पर हवाएँ न केवल तीव्र हैं अपितु ठण्डी भी हैं और ज्यादा देर यहाँ बैठना संभव न था, पास ही पड़ी एक मजबूत लोहे की रॉड उठाकर उसके सहारे गोदावरी मंदिर की ओर बढ़ चला |


प्राचीन शिव मंदिर, ब्रह्मगिरी टॉप
