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​यमुनोत्री

जानकी चट्टी से यमुनोत्री धाम की पांच किमी की पैदल यात्रा आरंभ होती है, बन्दरपूँछ रेंज के नीचे स्थित कलानाग पर्वत से यमुना जी का उद्गम होता है |
जानकी चट्टी 

चार धाम यात्रा का पहला पड़ाव है, यमुनोत्री | ये पहले यमुना जी का उद्गम स्थल था वैसे अब माता का उदय ऊपर स्थित बंदर पूँछ पहाड़ के ग्लेशियर से होता है | यमुना जी सूर्य पुत्री और शनि देव की बहन हैं, तथा वर्षों से इनका निर्मल जल करोड़ों लोगों की प्यास बुझाता आया है |

इस वर्ष अक्टूबर में मुझे चार धाम यात्रा का सौभाग्य प्राप्त हुआ, वैसे सीजन ऑफ़ हो चूका था पर मौसम बहुत अच्छा था | हरिद्वार मैं सुबह चार बजे पहुँच गया, पहले हरकी पैड़ी में स्नान किया फिर बस स्टैंड आ गया, पता चला यहाँ से कोई डायरेक्ट बस नहीं है | यात्रा सीजन ऑफ होने के बाद इक्का दुक्का बस ही मिलती हैं वो भी उत्तरकाशी या बद्रीनाथ के लिए और वैसे भी उत्तराखंड (विशेषतः गढ़वाल) में परिवहन मुख्यतः प्राइवेट बसों पर ही निर्भर है |

अभी बस अड्डे पर पहाड़ के लिए चार ही बस थीं, एक उत्तरकाशी जा रही थी, दूसरी गंगोत्री और दो बद्रीनाथ और श्रीनगर के लिए | बाहर प्राइवेट बस स्टैंड जाकर भी पता किया, यमुनोत्री के लिए कोई बस नहीं है, पर देहरादून से बस मिल सकती है ऐसा पता चला, वो भी निश्चित नहीं था | मैंने मन ही मन माँ से क्षमा मांगी की शायद इस बार मैं यमुनोत्री नहीं पहुँच सकूंगा पर उनसे कुछ उपाय करने की प्रार्थना कर रहा था |

कुछ उपाय नजर न आता देखकर मैं गंगोत्री जाने वाली बस में बैठ गया, बस 6 बजे छूटने वाली थी और तब तक बाकी तीन बसें छूट गयीं | पर यहाँ एक और समस्या आ खड़ी हुई | आज करवाचौथ है और कल आधी रात से यहाँ बसों के किराये बढ़ा दिए गए, पर टिकेट वेंडिंग मशीन अपडेट नहीं की गयीं और दूसरा इस बस के कंडक्टर और ड्राईवर भी नहीं आये | बार बार यात्रियों की शिकायत पर दूसरी बस का स्टाफ़ अरेंजे किया गया और इसमें 8 बज गए पर अब सर्वर स्लो होने से मशीन अपडेट नहीं हो पा रही थी, और बेशर्मी तो तब हुई जब नौ बजे स्टाफ ने बताया कि आप लोग प्राइवेट बस से गंगोत्री निकल जाएँ |

अब हमारे पास दूसरा कोई विकल्प नहीं था और मन ही मन गुस्सा होते हुए हम प्राइवेट बस स्टैंड पहुँचे, गंगोत्री की बसें जा चुकी हैं, अभी उत्तरकाशी तक के लिए बस है | गंगोत्री की बस में मेरी भेंट श्री सुमंत मिश्रा जी से हुई, वो भी गंगोत्री जा रहे थे और इस लगातार होती देर से बहुत अप्रसन्न  प्रतीत हो रहे  थे | अब वो भी सबके साथ इस उत्तरकाशी की बस में बैठ गए | बातों बातों में पता चला कि दो बार साइकिल से यात्रा कर चुके हैं , एक बार चारों धाम और एक बार बद्रीनाथ और केदारनाथ | सुनकर मैं आश्चर्यचकित रह गया और उनके साहस एवं अदम्य इच्छाशक्ति को प्रणाम किया |

इन दुर्गम पर्वतों पर उनकी ये साइकिल यात्रा जो कि बरसात के  मौसम  में की  गयी थी  किसी प्रेरणा से कम नहीं है | जबर्दस्त सीधी चढ़ाई और उतराई, खतरनाक पहाड़ी रास्ते न कहीं रुकने की ना खाने की कोई व्यवस्था, बस प्रभु का नाम लेकर चलते गए, रास्ता कटता गया और यात्रा पूर्ण होती गयी |

बड़ी बात तो ये कि मिश्रा जी अन्न नहीं ग्रहण करते बस फल, आलू और मूंगफली के दाने यही उनका आहार है | आजकल हम जैसे लोग चलने से पहले ही तमाम तरह की चिंता में रहते हैं, कितने बजे पहुँचेंगे, कहाँ खायेंगे, कहाँ रुकेंगे, कैसे सफ़र करेंगे और अन्य  व्यर्थ की चिंता |  दुनियाभर   के ट्रिप एडवाईजर  रिव्यु, मैप और जाने क्या क्या | बस प्रभु को छोड़कर और सब की चिंता | मिश्रा जी की यात्रा से हमें प्रेरणा मिलती है की प्रभु पर विश्वास हो तो बाकी व्यवस्था वो स्वयं ही कर देते हैं |

सवा नौ बजे बस चली, कंडक्टर आया तो मैंने बस का रूट पूछा और बताया कि मुझे यमुनोत्री जाना  था | जवाब सुनकर बड़ा सुखद आश्चर्य हुआ, पता चला उत्तरकाशी से 25 किमी पहले, धरासू बैंड है वहाँ से बरकोट के लिए बस मिलती है | बरकोट मैंने सुना था, ये यमुनोत्री के रास्ते पड़ता है और वहाँ से जानकी चट्टी कोई 30-35 किमी दूर है | मैंने मिश्रा जी से पूछा कि उनका क्या विचार है, पहले तो वे झिझके पर मेरे अनुरोध पर मान गए और हमने दो टिकट धरासू बैंड के ले लिए | यमुना माँ ने मेरी प्रार्थना सुन ली |

हरिद्वार से उत्तरकाशी 175 किमी है, रास्ता टिहरी के पास से जाता है, और विशालकाय टिहरी झील साफ़ नजर आती है | झील बहुत बड़ी है और कई किमी तक हमारे साथ चलती है, झील जबर्दस्त गहरी है, डैम की ऊंचाई इसी से साफ़ समझ आती है कि कई किमी तक इसके दोनों ओर कोई गाँव नहीं है, काफी ऊंचाई तक का इलाका डूब चुका है | गहराई बढ़ने के कारण कई किमी पहले तक गंगा की धारा ठहरी हुई सी नजर आती है | अभी यहाँ आल वेदर रोड का काम भी चल रहा है जिसके कारण जगह जगह पहाड़ दरक रहे हैं | रोड चौड़ी करने के कारण, अनगिनत डैमों के निर्माण से पहले से कमजोर हुए ये पहाड़ और भी ज्यादा धसक रहे हैं जिनके कारण जगह जगह भूस्खलन हो रहे हैं और जब तब रास्ता बंद हो जाता है |

लगभग 3 बजे हम धरासू बैंड पहुँच गए, यहाँ से आखिरी बस जो बारकोट जाती है निकलने ही वाली थी, हमारे साथ तीन और लोग बस में थे जिन्हें यमुनोत्री जाना था तो हम पाचों लोग जल्दी से बस में सवार हो गए | धरासू से बरकोट की दूरी लगभग 55 किमी है, रास्ता पतला है पर बिल्कुल शांत है  और  घने  जंगलों के बीच से जाता है | पहले राडी टॉप तक चढ़ाई है फिर लगातार उतराई है, आबादी नाम मात्र की है | ये 55 किमी का रास्ता चार धाम यात्रा के ऐसे रास्तों में से एक है जिनकी प्राकृतिक सुन्दरता अभी भी वैसी ही है, इसका कारण है कि अभी यहाँ किसी प्रकार का कोई निर्माण कार्य नहीं चल रहा है |

लगभग पांच बजे हम बरकोट पहुँच गए, ये एक बड़ी वैली है और आखिरी बड़ा टाउन | यहाँ से आगे जानकी चट्टी के लिए साधन मिलता है | यात्रा सीजन में शाम होने तक बस और जीप मिलती रहती हैं, पर अभी ऑफ सीजन में आगे का साधन इस समय मिलना थोड़ा मुश्किल था | टैक्सी स्टैंड पर बहुत सारी जीप या मैक्स खड़ी थीं पर वो 11 से कम पर चलते नहीं हैं और हम पांच थे | सामान ऊपर चढ़ा कर हम चाय नाश्ता करने चले गए, वापस आए तो तीन और लोग आ गए थे और हमने मिलकर पूरी गाड़ी कर ली | यहाँ से जानकी चट्टी 45 किमी है और रास्ता काफी पतला है और अब पहली बार यमुना जी के दर्शन होते हैं | कल – कल बहता पानी गहरे नीले रंग का है, चारों ओर ऊँचे पहाड़ और बीच में नदी किनारे बसे छोटे छोटे गाँव, सुन्दरता देखते ही बनती थी | थोड़ी देर बाद अँधेरा हो गया और बस बीच में कुछ इक्का दुक्का लौटते वाहनों की रौशनी ही इस अँधेरे को चीरती थी |

हनुमान चट्टी से कुछ दूर पहले एक बड़ा भूस्खलन हुआ था जिससे ये रास्ता कई दिनों तक बंद रहा था और अभी जल्दी ही  खुला है, यहाँ एक पूरा पहाड़ ही दरक गया था और रह रह कर पत्थर गिरते रहते थे | रास्ता पूरी तरह टूट गया था और इसको बहुत धीरे पार करना पड़ा, ऐसे रस्तों  पर ही  यहाँ  के ड्राइवरों की कुशलता का पता लगता है | पहले हनुमान चट्टी से ही पैदल यात्रा आरंभ होती थी पर अभी 5 किमी आगे जानकी चट्टी तक रोड बन गयी है जिससे पैदल यात्रा बस 6 किमी की रह गयी है |

साढ़े सात पर हम जानकी चट्टी पहुँच गए, और पास ही एक होटल कर लिया | यहाँ जबर्दस्त ठण्ड है, मैं और मिश्रा जी एक ही रूम में रुके | हमने कल पहनने वाले कपड़े और थोड़ा सामान अलग किया बाकी वापस बैग में भर दिया क्यूंकि लौट कर यहीं आना था इसलिए इतना सामान ढो कर ले जाने का कोई मतलब नहीं था | नीचे ही रेस्टोरेंट था जहाँ हमने खाना खाया, मिश्रा जी के पास मूंगफली दाने और फल थे, उनकी इच्छा शक्ति देखकर मन ही मन हमने प्रणाम किया |

अगले दिन हम जल्दी उठे और लगभग 6 बजे यात्रा आरंभ कर दी | रास्ता बहुत अच्छा है, सीमेंटेड है और जगह जगह पीने के पानी, और आराम करने की व्यवस्था है | हम आज के पहले यात्री हैं और हमारा साथ दे रहे हैं दो पहाड़ी कुत्ते | इनकी भी अपनी कहानी है, इसके पहले भी मैं बहुत सारे  ट्रेक  पर गया हूँ  वहाँ भी ये साथ चलते हैं | पूरा दिन साथ चलने के बाद ये रात में आपके पड़ाव के आस पास ही रुक जाते हैं, और फिर अगले दिन चलने लगते हैं, यहाँ मैदान की तरह कोई सीमा विवाद नहीं है |

मिश्रा जी की उम्र यूँ तो 60 वर्ष है पर फिटनेस पूरी है, जब वो बलिया से पहली बार यात्रा पर आये थे तो उन्हें 2 महीने का समय लगा था, रोज कोई 40-50 किमी साइकिल चलाते थे | रुकने खाने की कोई व्यवस्था नहीं थी, पर भगवान की कृपा से व्यवस्था बनती चली गयी और उनकी यात्रा अच्छे ढंग से पूरी हुई | ऐसे संत समान व्यक्ति का साथ मिलना किसी सौभाग्य से कम नहीं था |

रास्ता बहुत अच्छा है, चढ़ाई है पर ये सीधी नहीं है इसलिए ज्यादा थकान नहीं होती और एक घंटे बाद हम भैरो मंदिर पहुँच जाते हैं | यहाँ से रास्ता घूमता है और प्रकाश की पहली किरणों से चमकती सुनहरी बंदर पूँछ चोटी दिखने लगती है, यमुनोत्री मंदिर इसी की तलहटी में है |

लगभग 8 बजे हम मंदिर पहुँच जाते हैं, जबर्दस्त ठण्ड है और पहाड़ी के कारण यहाँ धूप आने में समय लगता है | पहुँचते ही सामने गर्म पानी का सोता है जिसमे नहाने के बाद माता के दर्शन करते हैं | ठंड से काँपते यात्रियों के लिए ये किसी वरदान से कम नहीं है | हमने भी जल्दी से कपडे उतारे और सूरज कुण्ड में उतर गए | ये बस कमर की ऊंचाई तक गहरा है पर पानी खौलता हुआ है, ये इतना गर्म है कि इसमें उतरना तो दूर इसमें पांव डालना ही मुश्किल था |

अभी इसमें इक्का दुक्का पुजारी ही नहा रहे थे, पानी का तापमान सामान्य करने के लिए एक ठंडे पानी का पाइप पड़ा था पर उससे कोई फर्क नहीं पड़ रहा था | गर्म पानी एक तरफ से आ रहा था और दूसरे तरफ से ओवर फ्लो हो निकल रहा था, मिश्रा जी के पास एक छोटी स्टील की दूध वाली कैन थी जिससे हमने ठंडा – गर्म पानी मिलाकर नहाना शुरू किया | धीरे धीरे शरीर का तापमान सामान्य हुआ तो हिम्मत कर पैर अन्दर डाला पर मुश्किल से दो तीन सेकंड ही डाल पाए और फिर वापस उसी तरह नहाने लगे | हम ऐसे ही पांच दस मिनट तक नहाते रहे, वास्तव में बड़ा आनंद आ रहा था, ताज़ा बिल्कुल प्राकृतिक पानी जिसमे सल्फ़र भी थी एवं और भी बहुत से चिकित्सकीय गुण थे, ये स्किन के लिए बहुत अच्छा माना जाता है |

खैर थोड़ी देर बाद हम पैर डालकर आराम से बैठ गए और फिर हिम्मत कर इसमें उतर गए, पर इस 60 – 65 डिग्री के पानी में एक दो डुबकी ही लगा सके, हाँ पर इसमें खड़े होने में अब कोई परेशानी नहीं आ रही थी | कुल मिलाकर हम आधे घंटे के आस पास पानी में रहे फिर याद आया की यमुना माँ के दर्शन भी करने हैं और हम बाहर आए, और तब तक यहाँ दूसरे यात्री नहीं आये थे | यहाँ इस तरह के दो कुण्ड हैं एक पुरूषों के लिए और दूसरा महिलाओं के लिए |

इतना तरो ताजा कर देने वाला स्नान हमने जीवन में पहले नहीं किया था, सामने ही बायीं ओर मंदिर है और जल्दी से कपडे पहनकर हम माँ के दर्शन को उपस्थित हुए | यहाँ प्रसाद में चावल चढ़ाने की परम्परा है, जिसे पास ही एक छोटे गरम पानी के कुण्ड में डाल देते हैं और इसके उपरांत दर्शन करते हैं, और जब तक आप दर्शन कर आते हैं ये पक जाते हैं |

सांवरे रंग की माँ यमुना की प्रतिमा बड़ी ही अनुपम एवं दिव्य है, साथ ही साथ गंगा जी की भी एक प्रतिमा है | मंदिर के सामने बैठकर अपूर्व शांति का अनुभव होता है और यहाँ आराम से बैठकर ध्यान लगा सकते हैं | हम भाग्यशाली रहे कि हमें ज्यादा लोग नहीं मिले और जी भरकर माता के दर्शन और पूजा अर्चना की | यमुना जी मंदिर से सटकर ही बहती हैं, हमने जाकर माता को प्रणाम किया और थोड़ा जल अपने ऊपर छिड़क कर एक बोतल में भर लिया |

बिल्कुल पर्वत के पास स्थित ग्लेशियर से आने के कारण पानी बहुत बर्फीला है और तुरंत हाथ सुन्न पड़ जाते हैं, आगे जाकर हमने अपनी यात्रा में भागीरथी, अलकनंदा और मंदाकिनी का भी जल लिया, वो भी  बर्फीला था पर यहाँ का जल सबसे ज्यादा ठंडा था |

जल लेकर हमने पुनः कुछ छड़ माँ यमुना की दिव्य प्रतिमा के सामने बिताये, चावल भी तब तक पक चुके थे | अभी यात्रियों का आना आरंभ हो गया था, हमने कुछ और समय इस शांत एवं आध्यात्मिक वातावरण में व्यतीत किया और पुजारियों से आशीर्वाद लिया | माँ यमुना को प्रणाम किया और पुनः इस पावन स्थान में आने का अवसर मिले ऐसी प्रार्थना कर मंदिर से प्रस्थान किया |

लगभग 11 बजे हम वापस अपने होटल पहुँचे, खाना खाया और बरकोट जाने वाली जीप में बैठ गए | शाम को हम उत्तरकाशी पहुँच गए और अगले दिन गंगोत्री के लिए प्रस्थान किया | 

  

                               ॐ नमः शिवाय |

कुछ आवश्यक बातें |

मंदिर 3100 मीटर की ऊँचाई पर है, सामान्यतः यात्रा का मौसम मई से अक्टूबर होता है और दिन में  मौसम साफ रहने पर ज्यादा ठण्ड नहीं लगती है, पर शाम और रात में बहुत ठण्ड होती है और अगर बारिश हो जाये तो दिन भी काफी ठंडा हो जाता है इस लिए पूरी तैयारी से आयें |

देहरादून से जानकी चट्टी तक सीधी बस है वैसे यात्रा मौसम में हरिद्वार से भी सीधी बस मिलती है |

जानकी चट्टी और बरकोट में रहने खाने की अच्छी व्यवस्था है, मंदिर दर्शन के लिए सुबह जल्दी निकलें जिससे आराम से दर्शन हो सकें |  

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